लोकसभा चुनाव-2024: डेढ़ महीने तक चलने वाले महापर्व पर कितना होगा खर्च, कौन वहन करेगा? जानिए सबकुछ
रायपुर/सूत्र: देश में लोकसभा का अगला चुनाव सात चरणों मे होगा। निर्वाचन आयोग ने शनिवार को लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है। लोकसभा के पहले चरण का चुनाव 19 अप्रैल को होगा। दूसरे चरण के लिए 26 अप्रैल, तीसरे चरण के लिए 7 मई, चौथे चरण के लिए 13 मई, पांचवें चरण के लिए 20 मई, छठे चरण के लिए 25 मई और सातवें चरण के लिए 1 जून को वोटिंग होगी। नतीजों का ऐलान 4 जून को होगा। इस तरह चुनावी कवायद को पूरा होने में करीब डेढ़ महीने का वक्त लगेगा। आइए, यहां जानते हैं देश के पहले चुनाव पर कितना खर्च हुआ था, तब से इस खर्च में कितनी बढ़ोतरी हो गई है, इस खर्च को कौन उठाता है?
कौन उठाता है खर्च?
लोकसभा चुनाव का पूरा खर्च केंद्र सरकार उठाती है। इसमें चुनाव आयोग के प्रशासनिक कामकाज से लेकर वोटर आईडी कार्ड बनाने, चुनाव में सुरक्षा, पोलिंग बूथ बनाने, ईवीएम मशीन खरीदने, मतदाताओं को जागरूक करने जैसे खर्च शामिल होते हैं।
कितना खर्च होने का अनुमान?
पिछले महीने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अंतरिम बजट 2024 पेश किया था। इसमें चुनाव खर्च के लिए आवंटन 2023 में 2,183.78 करोड़ रुपये से बढ़कर 2,442.85 करोड़ रुपये हो गया है। इस आवंटन में से 1000 करोड़ रुपये लोकसभा चुनावों में जाएंगे। मतदाता पहचान पत्र के लिए आवंटन को बढ़ाकर 404.81 करोड़ रुपये कर दिया गया है। 2023-24 में मतदाता पहचान पत्र के लिए संशोधित बजट 79.66 करोड़ रुपये था। ईवीएम के लिए बजटीय आवंटन 34.84 करोड़ रुपये है। अन्य चुनाव खर्चों के मद में कुल 1,003.20 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
चुनाव आयोग को इस वित्तीय वर्ष में चुनाव कराने के लिए 321.89 करोड़ रुपये भी दिए गए हैं। इसमें से 306.06 करोड़ रुपये चुनाव कराने में होने वाले खर्च के लिए हैं। सार्वजनिक कार्यों के लिए अलग रखी गई रकम 2.01 करोड़ रुपये है। प्रशासनिक सेवाओं के लिए किया गया आवंटन 13.82 करोड़ रुपये है। वित्त मंत्री ने पिछले साल संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान चुनाव-संबंधी खर्च के लिए 3,147.92 करोड़ रुपये और चुनाव आयोग के प्रशासन के लिए 73.67 करोड़ रुपये का अतिरिक्त आवंटन किया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में 3,870 करोड़ रुपये की भारी रकम खर्च हुई थी।
पहले लोकसभा चुनाव पर कितना हुआ था खर्च?
आजादी के बाद देश में पहली बार 1951-52 में आम चुनाव हुए। तब इसकी लागत 10.5 करोड़ रुपये थी. 2014 के लोकसभा चुनाव तक यह खर्च बढ़कर 3870.3 करोड़ रुपये हो गया। इस दौरान मतदाताओं की संख्या भी 17.5 करोड़ से बढ़कर 91.2 करोड़ हो गई। 1957 के आम चुनाव को छोड़कर हर लोकसभा चुनाव में खर्च बढ़ा है। 2009 से 2014 के बीच चुनाव खर्च लगभग तीन गुना बढ़ गया. 2009 के लोकसभा चुनाव में 1114.4 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। जबकि 2014 में 3870.3 करोड़ रुपये खर्च हुए थे।
चुनावी खर्च बढ़ने की वजह क्या?
लोकसभा चुनाव का खर्च बढ़ने के पीछे कई कारण हैं। पहली वजह तो है कि हर चुनाव में वोटरों की संख्या् में इजाफा होता है। इसके कारण संसाधनों पर भी अधिक खर्च होता है। इसके अलावा कैंडिडेट से लेकर पोलिंग बूथ और संसदीय क्षेत्रों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है। 1951-1952 के लोकसभा चुनाव में 53 पार्टियों के 1,874 उम्मीदवार 401 सीटों से मैदान में उतरे थे। साल 2019 में यह संख्या काफी ज्यादा बढ़ गई। पिछले लोकसभा चुनाव में 673 पार्टियों के 8,054 कैंडिडेट 543 सीटों पर उतरे थे। कुल 10.37 लाख पोलिंग बूथ पर मतदान हुए थे।