कौंदकेरा में किसानों के 80 प्रतिशत फसल बर्बाद, शासन से क्षतिपूर्ति की मांग

गरियाबंद/ खेलन महिलांगे : पहले बारिश और ओलावृष्टि की मार और अब फसल पर बीमारी की मार किसानों की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी है। आज किसान त्राहिमाम त्राहिमाम कर रहा है। एक तरफ पूरा देश खुशियों और रोशनी का पर्व दीपावली मना रहा हैं और वहीं दूसरी ओर किसानों के लिए यह पर्व अंधकार बन गया है। किसानों ने शासन से क्षतिपूर्ति के लिए समाचार के माध्यम से प्रशासन से गुहार लगाने की बात कही है। किसानों के खेतों में प्रति एकड़ 80 प्रतिशत फसल बर्बाद हो गई है। किसानों को कर्ज चुकाने की चिंता सता रही है। धान का अर्ली व्हेरायटी सहित स्वर्णा के दानों में बीमारी का प्रकोप देखने को मिल रहा है।

फिंगेश्वर ब्लॉक के ग्राम कौंदकेरा सहित क्षेत्र की धान फसलें तना छेदक और पत्ती लपेट कीट रोग की चपेट में आ गई है। किसानों ने निजी दुकानों से प्राइवेट कंपनियों की महंगी दवाईया खरीद कर फसल में स्प्रे किए हैं, लेकिन कीटनाशक स्प्रे भी इस बीमारी पर वेअसर साबित हुई। एक एकड़ में 5000 से 8000 रुपए दवा छिड़काव में खर्च आया। इसके बावजूद भी फसल में बीमारी लग गई।

हर साल नकली दवा और खराब बीजों के चलते बड़ी संख्या में किसानों की फसल बर्बाद होती है. या फिर किसानों को कम उत्पादन मिलता है. हालांकि किसानों तक शुद्ध और अच्छी क्वालिटी का बीज  मिले, इसके लिए सरकार लगातार नए-नए उपाय करती रहती है. बीज खेती का आधार है. अच्छी क्वालिटी का बीज सामान्य बीज के मुकाबले 20-25 फीसदी अधिक पैदावार देते हैं. इसलिए शुद्ध और प्रमाणित बीज अच्छी पैदावार का आधार होता है. प्रमाणित बीजों का इस्तेमाल करने से जहां एक ओर अच्छी पैदावार मिलती है वहीं दूसरी ओर समय और पैसों की बचत होती है।

गौरतलब है कि गांव की अधिकांश किसानों ने इस उम्मीद में प्रमाणित बीज खरीद कर धान फसल लगाई थी कि इससे बेहतर उत्पादन लेकर वे अपनी आय बढ़ा सकेंगे। किसानों ने सहकारी समिति से प्रमाणित बीज खरीदकर बोए थे। बीज बोने के कुछ समय बाद फसल मे बीमारी लगनी शुरू हो गई। किसानों ने बताए अनुसार फसल में दवा का छिड़काव भी किया। इसके बाद भी कोई सुधार नहीं हुआ। 

किसानों के खेतों में प्रति एकड़ 50-80 प्रतिशत फसल बर्बाद हो गई है। किसानों को कर्ज चुकाने की चिंता सता रही है। धान का अर्ली व्हेरायटी सहित स्वर्णा के दानों में बीमारी का प्रकोप देखने को मिला रहा है। अब प्रशासन मौके पर आकर फसल की बर्बादी का आंकलन कर मुआवजा प्रदान करे तो कुछ राहत मिल पाएगी। ऐसे खेतों में पड़ी बर्बाद फसल को देखकर किसान निराशा और मानसिक पीड़ा के शिकार हो रहें है।

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KR. MAHI

CHIEF EDITOR KAROBAR SANDESH

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