आरटीआई कानून को धता बताते हुए आवेदक को किया गुमराह पढ़ें, जिला शिक्षा अधिकारी की कारनामा
प्रतिनिधि/गरियाबंद : आरटीआई (राइट टु इन्फर्मेशन) यानी सूचना का अधिकार ने आम लोगों को मजबूत और जागरूक बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है। यह कानून देश के सभी हिस्सों में लागू है। इस कानून के जरिए आप सरकारी महकमे से संबंधित अपने काम की जानकारी पा सकते हैं, कानून का मकसद सरकारी महकमों की जवाबदेही तय करना और पारदर्शिता लाना है ताकि भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सके। आम आदमी के लिए एक बड़ा अधिकार है लेकिन उससे अधिक कटु सत्य यह है कि अधिकारी इस अधिनियम की धज्जी उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे है। दरअसल जिला शिक्षा विभाग गरियाबंद द्वारा आरटीआई अधिनियम की धज्जियां उड़ाते हुए जानकारी छुपाने के मकसद से इस तरह के पत्राचार किए गए हैं, कि अपने ही द्वारा भेजे गए पत्रों में अधिकारी अब खुद ही उलझ गए हैं।
आरटीआई के एक मामले में आवेदक द्वारा दिनांक 14/09/2020 को जनसूचना अधिकारी एवं जिला शिक्षा अधिकारी गरियाबंद के समक्ष सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत आवेदन प्रस्तुत कर कुछ जानकारी चाही गई थी। समय सीमा पर जनसूचना अधिकारी द्वारा जानकारी ना देकर दिनांक 23/10/2020 को पत्र प्रेषित कर लेख किया गया कि उक्त जानकारी की कार्यवाही कलेक्टर के निर्देशानुसार प्रक्रियाधीन है। इसलिए कार्यवाही पूर्ण होने के पश्चात ही आपके द्वारा चाही गई जानकारी प्रदाय किया जाना संभव है।
जिसके बाद आवेदक द्वारा प्रथम अपीलीय अधिकारी संभागीय संयुक्त संचालक, शिक्षा संभाग रायपुर के समक्ष प्रथम अपील प्रस्तुत किया गया। अपीलीय अधिकारी द्वारा जनसूचना अधिकारी को संबंधित समस्त दस्तावेजों के साथ दिनांक 03/12/2020 को रायपुर पेंशनबाड़ा स्थित कार्यालय मे उपस्थित होने को पत्र प्रेषित किया गया, जिसकी एक प्रतिलिपि आवेदक को भी भेजी गई थी। आवेदक उक्त दिनांक को किसी कारणों से प्रथम अपीलीय अधिकारी के समक्ष उपस्थित ना हो सका। लेकिन जनसूचना अधिकारी द्वारा भेजे गए प्रतिनिधि युवराज ध्रुव प्रथम अपीलीय अधिकारी के समक्ष उपस्थित हुए। प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा आदेश पत्र क्रमांक 1353/ दिनांक 04/12/2020 को आवेदक के पास पत्र प्रेषित किया गया जिसमें लिखा गया है कि जनसूचना अधिकारी ( जिला शिक्षा अधिकारी ) गरियाबंद के प्रतिनिधि युवराज ध्रुव द्वारा बताया गया कि अपीलार्थी को जानकारी पत्र क्रमांक 1968/ जिला शिक्षा अधिकारी/ आरटीआई/ 2020 दिनांक 23/10/ 2020 को उपलब्ध करा दी गई है। चूंकि अपीलार्थी को जनसूचना अधिकारी द्वारा जानकारी उपलब्ध करा दी गई है। अतःअपीलार्थी की अपील को खारिज किया जाता है ।
जबकि आवेदक को आज दिवस तक कोई जानकारी नहीं दी गई है। पत्र प्राप्त होते ही आवेदक द्वारा प्रथम अपीलीय अधिकारी से मोबाईल के माध्यम से चर्चा किया गया। प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा बताया गया कि जनसूचना अधिकारी के प्रतिनिधि युवराज ध्रुव द्वारा बताए अनुसार ही आप को पत्र भेजा गया है। प्रथम अपीलीय अधिकारी से आवेदक द्वारा पूछा गया कि क्या चाही गई जानकारी (फाइल) की एक प्रति प्रतिनिधि द्वारा आपके समक्ष प्रस्तुत की गई है? क्या प्रतिनिधि द्वारा बताया गया कि जानकारी अगर दी गई है तो कितने प्रतियों में दी गई है? किस माध्यम से जानकारी दी गई है। डाक से भेजी गई है,या कार्यालय में उपस्थित होकर जानकारी प्राप्त करने हेतु पत्र प्रेषित कर आवेदक को बुलाकर जानकारी दी गई है। उक्त प्रश्न के जवाब प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा नहीं दिये गए ।
जनसूचना अधिकारी द्वारा भेजे गए प्रतिनिधि युवराज ध्रुव से मोबाइल के माध्यम से बातचीत में उक्त कथन की पुष्टि में कहा गया की मुझे ऐसा कहने के लिए हमारे जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा कहा गया था, इसलिए मैंने जाकर प्रथम अपीलीय अधिकारी के सामने ऐसा कह दिया। बाकी हमारे अधिकारी ही जानेंगे आप उन्हीं से पूछो।
मतलब साफ तौर पर यह देखा जा सकता है कि किसी भी सच को छुपाने के लिए अपने औदे पर बैठे अधिकारी इस तरीके से सिस्टम का हिस्सा बनकर हावी हो चुके हैं, कि किसी भी स्तर तक अपने आप को बचाने के खातिर झूठ का सहारा ले सकते हैं। चिंता कि विषय है की सूचना का अधिकार अधिनियम, का मकसद सरकारी महकमों की जवाबदेही तय करना और पारदर्शिता लाना है ताकि भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सके। विभाग में बैठे ऐसे अधिकारी इसकी धज्जियां उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
इस जानकारी की सच्चाई यह है कि वर्ष 2019/20 से संबंधित है। जो कि जिला शिक्षा अधिकारी के आदेश पर जांच समिति गठित की गई थी। जिसकी ओर से फाइल तैयार कर जिलाधिकारी को वापस सौंपी गई है। उसमें प्रधान पाठकों के बयान व रिपोर्ट की मांग किया गया है। जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा पत्र में कलेक्टर के निर्देशानुसार प्रक्रियाधीन बताकर जानकारी को छुपाने की बड़ी कोशिश की जा रही है। जबकि उक्त संबंध में पूरी की जा चुकी जांच की रिपोर्ट से वर्तमान प्रक्रियाधीन कार्यवाही का दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं हैं। जिले की अफसरशाही ने सूचना के अधिकार अधिनियम की धार कुंद कर दी है। भ्रष्ट सरकारी तंत्र में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से ही सरकार ने सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 बनाया था। इसके जरिये एक कमजोर व्यक्ति को भी सरकारी महकमें से जानकारी हासिल करने का हथियार मिल गया था। इससे अफसरों में बेचैनी बढ़ी और उन्होंने इसकी धार कुंद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसकी बानगी ये समाचार हैं।