लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक दलों ने गूगल पर झोंके विज्ञापन

रायपुर/सूत्र: विभिन्न राजनीतिक दलों ने पिछले कुछ महीनों के दौरान गूगल के माध्यम से अपने विज्ञापन खर्च में वृद्धि की है। खासकर राजनीतिक विज्ञापनों पर खर्च मार्च तक पिछले तीन महीनों में लगभग 100 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। यह रकम पिछले साल की समान अवधि के 11 करोड़ रुपये से नौ गुना ज्यादा है। ये ऐसे विज्ञापन हैं जो राजनीतिक लेबल के साथ चलते हैं और ये डिजिटल माध्यम से मतदाताओं तक पहुंच बनाने के संपूर्ण परिदृश्य से अलग हैं, लेकिन इनसे व्यापक रुझानों का पता चल सकता है।

फ़ाइल फोटो

ये आंकड़े 17 मार्च तक के हैं। गूगल ऐसे विज्ञापनों को चुनावी विज्ञापन के तौर पर चिह्नित करती है, जो राजनीति दल अथवा प्रत्याशी अथवा मौजूदा लोक सभा या विधान सभा सदस्यों द्वारा चलाए जाते हैं।

निर्वाचन आयोग ने बीते शनिवार को चुनाव की तारीखों का ऐलान किया है, जिसके अनुसार लोक सभा चुनाव 19 अप्रैल से 1 जून के बीच सात चरणों में संपन्न कराए जाएंगे। केंद्र में नई सरकार बनाने के लिए इन चुनावों में लगभग 97 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे।

तीन महीनों के दौरान गूगल पर राजनीतिक विज्ञापनों का औसत खर्च वर्ष 2019 (जब से गूगल ने आंकड़े एकत्र करने शुरू किए) के बाद से सबसे अधिक रहा है। इन आंकड़ों में सर्च, डिस्प्ले, यूट्यूब और जीमेल पर दिखाए गए विज्ञापनों से आया राजस्व शामिल है।

गूगल को सबसे ज्यादा राजनीतिक विज्ञापन उत्तर प्रदेश से दिए गए. इसके बाद ओडिशा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और गुजरात हैं। कुल विज्ञापन खर्च का 40 प्रतिशत शीर्ष पांच राज्यों से आया।

गूगल के आंकड़ों के अनुसार जनवरी के बाद से अब तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सबसे अधिक विज्ञापन दिए। आंकड़ों के मुताबिक पार्टी ने गूगल पर विज्ञापन पर 30.9 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। इस दौरान कांग्रेस ने केवल 18.8 लाख रुपये ही खर्चे हैं। कुल धनराशि का 86.4 प्रतिशत वीडियो विज्ञापन पर खर्च किया गया है। शेष 13.6 प्रतिशत धनराशि तस्वीर फार्मेट में विज्ञापन पर खर्च की गई। वहीं लेखन सामग्री पर नगण्य खर्च रहा।

वेस्लेयन यूनिवर्सिटी के एरिका फ्रैंकलिन फाउलर, बाउडोइन कॉलेज के मिकाइल एम फ्रैंज, स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी के ग्रेगरी जे मार्टिन, इमोरी यूनिवर्सिटी के वाशिंगटन जैकरी पेस्कोविज और वॉशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी के ट्रेविस एन रिडाउट द्वारा अगस्त 2020 में ‘राजनीतिक विज्ञापन ऑनलाइन और ऑफलाइन’ शीर्षक से तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि डिजिटल माध्यम से विज्ञापन का बहुत अधिक असर होता है और प्रत्याशियों के लिए अपने लक्षित वर्ग तक पहुंचने में टेलीविजन जैसे अन्य पारंपरिक मीडिया की अपेक्षा अधिक सुगम है।

टेलीविजन जैसे अन्य पारंपरिक मीडिया की तुलना में लक्षित दर्शकों तक पहुंचना आसान है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘ऑनलाइन विज्ञापन की कम लागत और अधिक स्पष्टता के साथ लक्षित दर्शकों तक अपना संदेश पहुंचाने की क्षमता उम्मीदवारों को गूगल पर विज्ञापन देने के लिए प्रेरित कर सकती है, ताकि उनका संदेश टीवी की तुलना में बड़े दर्शकों तक पहुंच सके।

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KR. MAHI

CHIEF EDITOR KAROBAR SANDESH

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