कैसे एक लड़का चाय बेचते-बेचते बना करोड़पति, पढ़ें सफलता के पीछे की दिलचस्प कहानी

रायपुर : यह कहानी हैं,प्रफुल्ल बिलौरे का जिसे आज ‘एमबीए चायवाला’ के नाम से जाना जाता है। चाय का कारोबार इस कदर चला कि करोड़ों का टर्नओवर हैं। 20 साल की उम्र में MBA की तैयारी के लिए घर से निकले प्रफुल्ल बिलौरे को पता भी नहीं था कि MBA शब्द उन्हें एक दिन पूरी दुनिया में मशहूर कर देगा।

इंदौर से अहमदाबाद पहुंचे प्रफुल्ल का सपना था कि आईआईएम में दाखिला मिले और अच्छे पैकेज पर नौकरी करू, लेकिन जब एमबीए में सफलता नहीं मिली तो प्रफुल्ल ने चाय की दुकान लगाने की सोची और यहीं शुरू होती हैं,सफलता की दिलचस्प कहानी…

फ़ाइल फोटो प्रफुल्ल बिलौरे

प्रफुल्ल बिलौरे का जन्म 14 जनवरी 1996 को धार, इंदौर, मध्य प्रदेश में हुआ था। प्रफुल्ल बचपन से ही बहुत महत्वाकांक्षी था और बड़ा होकर एमबीए करना चाहता था और एमबीए करने के लिए प्रफुल्ल को अपने परिवार के सदस्यों का पूरा सहयोग प्राप्त था।

लेकिन जब सफलता नहीं मिली तो उन्होंने दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों का रुख किया लेकिन मन लगा अहमदाबाद में। प्रफुल्ल को अहमदाबाद शहर इतना पसंद था कि वह वहीं बसने की सोचने लगा। अब उसे जीने के लिए पैसों की जरूरत थी और पैसे के लिए कुछ करना है, यही सोचकर प्रफुल्ल ने अहमदाबाद के मैकडॉनल्ड्स में कर ली। यहां प्रफुल्ल को 37 रुपए प्रति घंटे की तनख्वाह मिलती थी।

काम करते समय, प्रफुल्ल ने महसूस किया कि वह जीवन भर मैकडॉनल्ड्स की नौकरी नहीं कर सकता, इसलिए उसने अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने का विचार किया। लेकिन प्रफुल्ल के पास बिजनेस शुरू करने के लिए पैसे नहीं थे।

ऐसे में प्रफुल्ल ने ऐसा बिजनेस करने की सोची जिसमें पूंजी भी कम हो और आसानी से किया जा सके। यहीं से उनके मन में चाय का कारोबार शुरू करने का विचार आया। काम शुरू करने के लिए प्रफुल्ल ने पिता से झूठ बोला और पढ़ाई के नाम पर 10 हजार रुपये मांगे. इस पैसे से प्रफुल्ल ने एक चाय की दुकान शुरू की।

फ़ाइल फोटो

पहले दिन प्रफुल्ल बिलौरे की एक भी चाय नहीं बिकी, तो उसने सोचा कि अगर कोई मेरे साथ चाय पीने नहीं आ रहा है, तो क्यों न खुद उसके पास जाकर चाय पिला दी जाए। प्रफुल्ल पढ़ा-लिखा तो था ही,अच्छी अंग्रेजी भी बोलता था। उसकी चाल काम कर गई और सभी ने कहा कि चाय वाला भी अंग्रेजी बोलता है, और चाय की दुकान शुरू हो गई। दूसरे दिन से चाय की दुकान चल पड़ीं।

प्रफुल्ल सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक काम करता था और शाम 7 से 11 बजे तक अपनी चाय की दुकान लगाता था। काम अच्छा चलने लगा, 600 कभी 4000 तो कभी 5000 तक की बिक्री शुरू हुई और उसने नौकरी छोड़ दी और अपना पूरा ध्यान अपनी चाय पर केंद्रित कर दिया।

चाय का काम अच्छा चलने लगा, नेटवर्क अच्छा हो गया, तो प्रफुल्ल ने सोचा कि क्यों न अब दुकान का अच्छा नाम रखा जाए, ताकि बेहतर मार्केटिंग हो सके। लगभग 400 नामों का चयन करने के बाद, एक नाम तय किया गया था, जो ‘मिस्टर बिलौरे अहमदाबाद’ था जिसका संक्षिप्त नाम ‘एमबीए चाय वाला’ था। शुरू में लोग उनका मजाक उड़ाते थे, लेकिन धीरे-धीरे लोगों को प्रफुल्ल का आइडिया पसंद आने लगा।

‘एमबीए चाय वाला’ धीरे-धीरे मशहूर हो गया। अब ‘एमबीए चाय वाला’ स्थानीय कार्यक्रमों में दिखाई दे देने लगा। प्रफुल्ल ने वैलेंटाइन डे पर फ्री टी’ दी थी, जो वायरल हो गई और वहीं से और भी पॉपुलर हो गए । अब उन्हें और भी बड़े ऑर्डर मिलने लगे। आज ‘एमबीए चाय वाला’ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों का आयोजन करता है।

प्रफुल्ल ने 300 वर्ग फुट में अपना कैफे खोला और पूरे भारत में इसकी फ्रेंचाइजी दी। एक वक्त प्रफुल्ल का सपना था कि जिन एमबीए संस्थानों में पढ़ाई की जाए। आज वही संस्थान प्रफुल्ल को मैनेजमेंट गुरु के रूप में व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित करता है। महज 25 साल की उम्र में उनकी नेटवर्थ 3 से 4 करोड़ सालाना है। आज इसके देश के कई शहरों में भी ‘एमबीए चायवाला’ के नाम से आउटलेट हैं।

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KR. MAHI

CHIEF EDITOR KAROBAR SANDESH

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