भारत कैसे आया, जानिए डिटॉक्स से डेटॉल तक की पूरी कहानी
नई दिल्ली/सूत्र : इसकी धमक का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि यह बाजार ही नहीं, संसद तक में गूंज रहा है। बड़े से बड़ा हो या गरीब सबकी पहली पसंद यही होती है। इसलिए दूर-दूर तक कोई इससे टकराने वाला नहीं है। अगर आपके दिमाग में किसी पहलवान या बॉडीबिल्डर की छवि बन रही है तो हम साफ कर दें कि यह कोई शख्स नहीं बल्कि आपके घरों के बाथरूम में मौजूद डेटॉल है। संसद में जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कांग्रेस नेताओं को डेटॉल से मुंह धोने की सलाह दी तो हमने सोचा कि क्यों न आपको पूरी कहानी बताई जाए. जिसकी शुरुआत सालों पहले ब्रिटेन में हुई थी, आज ये भारत के हर घर में मौजूद है. आइए पढ़ते हैं डेटॉल की कहानी।
1814 में स्थापित एक ब्रिटिश ब्रांड कंपनी रेकिट ने 1930 में डेटॉल का निर्माण शुरू किया। रेकिट बेंकिज़र इस कंपनी के मालिक थे। 90 के दशक में सेप्सिस के संक्रमण से प्रसव के दौरान महिलाओं की मौत हो जाती थी। रेकिट बेंकिज़र ने इस समस्या को समझा और डेटॉल बनाया। साल 1930 में ब्रिटेन में इस कंपनी की फैक्ट्री में डेटॉल बनाने का काम शुरू हुआ। इसके बाद डेटॉल का ट्रायल शुरू हुआ, ट्रायल में डेटॉल के इस्तेमाल के कुछ फायदे भी देखने को मिले। डॉक्टरों ने पाया कि सेप्सिस के कारण होने वाले 50 प्रतिशत तक संक्रमणों को रोका जा सकता है। शुरुआत में इसका नाम डिटॉक्स रखा गया था। इसमें क्लोरोक्सिलोन नामक रसायन होता है, जो सर्जिकल और त्वचा के संक्रमण को रोकने में प्रभावी होता है। डेटॉल एंटीसेप्टिक का इस्तेमाल सबसे पहले अस्पतालों में किया गया था।
शुरुआत में अस्पतालों में डेटॉल का इस्तेमाल होता था। प्रसव के बाद मां और बच्चे को सेप्सिस संक्रमण से बचाने के लिए इसका इस्तेमाल प्रसव के बाद किया जाता था। सेप्सिस के कारण होने वाले जीवाणु संक्रमण से मां और बच्चे की मृत्यु की संभावना बहुत अधिक थी। इस संक्रमण से बचाव के लिए डेटॉल का इस्तेमाल किया जा रहा है। डेटॉल के प्रयोग से प्रसव पूर्व संक्रमण में 50% की गिरावट आई। बाद में डेटॉक्स का नाम बदलकर डेटॉल कर दिया गया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अस्पतालों में डेटॉल का व्यापक रूप से उपयोग किया गया था।
भारत में एंट्री – डेटॉल ने साल 1936 में भारत में एंट्री की। शुरुआत में इसे मेडिकल स्टोर्स में बेचा जाता था, लेकिन धीरे-धीरे यह किराना स्टोर्स तक पहुंच गया। 1945 में इसकी पहली फैक्ट्री पुणे में लगी। लोग इसका प्रयोग फिटकरी के साथ करते थे। उस समय भारत सहित दुनिया भर के देशों में एचआईवी/एड्स के बारे में जागरूकता अभियान चल रहे थे। शेविंग के लिए इस्तेमाल होने वाले रेजर को धोने के लिए डेटॉल का इस्तेमाल किया जाता था। यह वह समय था जब डेटॉल घर-घर में जाना जाने वाला नाम बन गया था। इसकी बिक्री तेजी से बढ़ रही थी। इसने Lifebuoy और Lux, Hindustan Unilever जैसे मशहूर ब्रांड को पीछे छोड़ दिया. डेटॉल की वैश्विक बिक्री में 62 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 1980 में देश में 62 मिलियन लोग डेटॉल का इस्तेमाल करते थे।
साल 2000 की शुरुआत के साथ डेटॉल ग्लैमरस होने लगी। आफ्टरसेव लोशन, फेस वॉश, हैंडवॉश, फ्लोर क्लीनर जैसी कैटेगरी में इसका इस्तेमाल होने लगा। कोरोना के दौरान डेटॉल सैनिटाइजर की डिमांड काफी बढ़ गई। जब किसी को चोट लगती है तो सबसे पहले नाम निकलता है डेटॉल का। अन्य ब्रांड डेटॉल पर लोगों का भरोसा नहीं जीत पाए हैं। आज भी जब लोग दुकानों पर एंटीसेप्टिक लेने जाते हैं तो वे एंटीसेप्टिक नहीं डेटॉल मांगते हैं। डेटॉल ने यह भरोसा जीत लिया है। डेटॉल के उत्पाद दुनिया के 120 देशों में बेचे जाते हैं।