1 मिनट में पता चल जाएगा दूध असली है या मिलावटी, आईआईटी मद्रास ने बनाया सस्ता डिवाइस

रायपुर/सूत्र: दूध में मिलावट के मामले आए दिन सामने आते रहते हैं. दूध में मिलावट की समस्या भारत, पाकिस्तान, चीन और ब्राजील जैसे देशों में ज्यादा है। लेकिन अब आधे से 1 मिनट में आसानी से दूध की शुद्धता का पता लगाया जा सकता है. आईआईटी मद्रास ने एक ऐसा उपकरण विकसित किया है जिसके जरिए आप घर बैठे दूध की शुद्धता की जांच कर सकते हैं। यह कागज आधारित पोर्टेबल डिवाइस दूध में यूरिया, डिटर्जेंट, साबुन, स्टार्च, हाइड्रोजन पेरोक्साइड, सोडियम-हाइड्रोजन-कार्बोनेट और नमक की मिलावट का आसानी से पता लगा सकता है। यह 3डी डिवाइस काफी सस्ती है और इससे पानी, जूस और मिल्कशेक में मिलावट का भी पता लगाया जा सकता है।

अभी तक दूध में मिलावट की जांच प्रयोगशाला में होती है। यह बहुत महंगा है और इसमें काफी समय लगता है। लेकिन आईआईटी मद्रास द्वारा विकसित डिवाइस काफी सस्ता है। बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक आईआईटी मद्रास में मैकेनिकल इंजीनियरिंग पढ़ाने वाले पल्लब सिन्हा महापात्रा ने कहा कि यह माइक्रोफ्लूडिक डिवाइस तीन लेयर का है। ऊपरी और निचली परतों के बीच सैंडविच बीच की परत है। उस पर लिक्विड डाला जाता है और थोड़ी देर के लिए सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। सूखने के बाद कागज की दोनों परतों पर टेप चिपका दिया जाता है। इसमें व्हाटमैन फिल्टर पेपर ग्रेड 4 का इस्तेमाल किया गया है जो तरल को प्रवाहित करने और रिएजेंट्स को स्टोर करने में मदद करता है।
उन्होंने कहा कि आसुत जल या इथेनॉल में सभी रिएजेंट्स को भंग कर दिया जाता है। यह उनकी घुलनशीलता पर निर्भर करता है। कलरिमिट्रिक डिटेक्शन टेक्निक का उपयोग करके तरल पदार्थों में मिलावट का पता लगाया जाता है। जांच में पता चला कि इस तरीके में मिलावटी पदार्थों से ही रिएजेंट रिएक्शन करते हैं और दूध में मौजूद तत्वों से कोई रिएक्शन नहीं होता है। एनालिटिकल टूल लिक्विड फूड सेफ्टी को मॉनीटर करने और विकासशील देशों के दूरस्थ क्षेत्रों में दूध में मिलावट का आसानी से पता लगाने में मदद कर सकता है।
खासकर विकासशील देशों में दूध में मिलावट एक बड़ी समस्या है। यह समस्या सबसे ज्यादा भारत, पाकिस्तान, चीन और ब्राजील में है। मिलावटी दूध के सेवन से किडनी की समस्या, बच्चों की मौत, पेट की समस्या, डायरिया और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। महापात्रा के नेतृत्व में सुभाशीष पटारी और प्रियंका दत्ता ने यह शोध किया है। उनका यह शोध मशहूर साइंस जर्नल नेचर में प्रकाशित हुआ है।