गरियाबंद जिले में रेत माफियाओं की हौसलें बुलंद, प्रशासन लाचार, पढ़ें पूरी खबर
गरियाबंद/खेलन महिलांगे की रिपोर्ट : गरियाबंद जिला इन दिनों अवैध रेत माफियाओं का सुरक्षित गढ़ बनता जा रहा है। अवैध रेत माफिया बेखौफ उत्खनन कर रहे हैं, लेकिन उन पर प्रशासनिक सख्ती नहीं है। जिससे खनन माफियाओं को प्रोत्साहन मिल रहा है, कई खदानें बिना रॉयल्टी व बिना अनुमति के अवैध रूप से चल रही हैं।
मंगलवार 12/10/2021 से शुक्रवार 22/10/2021 तक मीडिया ऑफिस गरियाबंद की टीम ने कुटेना घाट, रक्सी, हथखोज, बिड़ोरा, पथर्री, कोसमखुंटा,पसौद व लचकेरा सहित जिले का सघन दौरा किया। कुटेना घाट और तर्रा में हाईवा और पोकलेन नजर आए थे।
जहां रैम्प के माध्यम से रेत का अवैध परिवहन किया जा रहा था। जहां बेतरतीब खुदाई के कारण नदी पर गड्ढे भी नजर आए। अन्य रेत खदानों में हाथखोज, बिडोरा, पथर्री, लचकेरा, कोसमखुंटा आदि जगहों पर भी अवैध रेत खनन माफिया की नजर है।
जिले में पैरी नदी, सूखा नदी एवं महानदी से रोजाना सैकड़ों हाईवा, डंपर रेत की खुदाई हो रही है, विभागीय मिलीभगत से बेधड़क रेत का काला कारोबार चल रहा है। लोगों का कहना है कि प्रशासनिक अधिकारी रेत माफिया के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। नतीजा यह है कि प्रतिबंध के समय भी रेत से भरे हाईवा, डंपर बेखौफ होकर निकल रहे हैं।
रेत माफिया के हौसले इतने बुलंद है कि नदी में पोकलेन लगाकर अवैध उत्खनन कर रहे हैं। नदी में रैंप भी बनाया गया है ताकि रेत का गलत तरीके से परिवहन किया जा सके। जिन घाटों की स्वीकृति नहीं हुई है वहां भी रेत माफिया सक्रिय हैं। शहर से सटा घाट हो या गांव का घाट, मनमाने ढंग से दिन-रात नदी के बीचोबीच चेन-माउंटिंग मशीन लगाकर नदी के बीच में प्रतिदिन सैकड़ों हाईवा रेत की खुदाई की जा रही है।
इस अवैध रेत उत्खनन की जानकारी पंचायत प्रतिनिधियों, खनिज अधिकारियों को न हो यह संभव नहीं है। शिकायत करने अथवा जानकारी देने पर खनिज विभाग के अधिकारी कहते हैं कि शिकायत मिली है, कार्रवाई करेंगे। कभी स्टाफ का बहाना तो कभी अधिकारी की छुट्टी की बातें कर अधिकारी इस अवैध निकासी को धड़ल्ले से संचालित करने में सहभागी होने से बच नहीं सकते हैं।
अगर कभी ज्यादा दबाव पर कार्रवाई भी होती है तो रेत माफिया को कार्रवाई पूर्व सूचना मिल जाती है और स्पाट से मशीन हटा दी जाती है। जिस प्रकार से रोज सैकड़ों हाईवा गाड़ियों में रेत परिवहन किया जा रहा है उससे जहां शासन को लाखों रुपये की रायल्टी की हानि तो हो रही है वहीं नदियों में मनमाने उत्खनन से पर्यावरण को भारी नुकसान से भी इंकार नहीं किया जा सकता।