India-US Tension: क्या भारत खो रहा है अपनी साख? जानें क्यों जरूरी है ‘प्रोडक्ट नेशन’ बनना

नई दिल्ली: भारत और अमेरिका के बीच हाल ही में बढ़ा टैरिफ विवाद एक बड़े सवाल की ओर इशारा करता है—क्या भारत अपनी वैश्विक साख खो रहा है? क्या भारत को सिर्फ मैन्यूफैक्चरिंग ही नहीं, बल्कि एक प्रोडक्ट नेशन बनने की दिशा में सोचना होगा? विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत को अब केवल सर्विस-ड्रिवन अर्थव्यवस्था से बाहर निकलकर इनोवेशन, रिसर्च और वैल्यू-बेस्ड प्रोडक्ट्स पर फोकस करना होगा।
अमेरिका ने भारत पर टैरिफ क्यों बढ़ाया?
अमेरिका ने हाल ही में रूस से तेल खरीदने को लेकर भारत पर टैरिफ बढ़ाए, जबकि चीन, जो रूस से भारत की तुलना में कहीं ज्यादा तेल खरीदता है, उस पर कोई कठोर कदम नहीं उठाया गया। विश्लेषकों के अनुसार, इसका कारण भारत की सीमित इकोनॉमिक स्ट्रेंथ है। भारत ऐसी कोई चीज़ नहीं बनाता जो वैश्विक बाजार में अनिवार्य हो और जिसे हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा सके।
बैंक ऑफ अमेरिका के मार्केट एनालिस्ट डेविड वू के अनुसार, भारत को रूस पर दबाव डालने का आसान जरिया बनाया जा रहा है। वहीं चीन पर अमेरिका खुलकर कदम उठाने से बच रहा है क्योंकि चीन कई महत्वपूर्ण प्रोडक्ट्स और सप्लाई चेन का केंद्र है।
विशेषज्ञों की राय: भारत को बनना होगा ‘प्रोडक्ट नेशन’
1. टीजी सीतारामन (चेयरमैन, AICTE)
“भारत को अब सिर्फ सर्विस इकोनॉमी से आगे बढ़ना होगा। हमें ऐसे IP-driven solutions बनाने होंगे जिन्हें एक्सपोर्ट किया जा सके। इसके लिए उच्च शिक्षा और रिसर्च में बड़ा बदलाव जरूरी है।”
2. अजय कुमार सूद (प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार, भारत सरकार)
“भारत डिजाइनिंग में अच्छा है, लेकिन हमारी हिस्सेदारी ग्लोबल चिप डिजाइन फैसिलिटीज में 10% से भी कम है। ज्यादातर काम विदेशी कंपनियों के निर्देश पर होता है। हमें अपनी स्पेसिफिकेशन्स के आधार पर डिजाइनिंग करनी होगी ताकि भारत इनोवेशन में लीडर बने।”
सिर्फ मैन्यूफैक्चरिंग क्यों नहीं काफी?
- सिर्फ मैन्यूफैक्चरिंग से मुनाफा सीमित होता है। वैल्यू चेन का बड़ा हिस्सा प्री-मैन्यूफैक्चरिंग(डिजाइन, IP, रिसर्च) और पोस्ट-मैन्यूफैक्चरिंग(ब्रांडिंग, मार्केटिंग) में होता है।
- उदाहरण: मोबाइल फोन असेंबली या चिप मैन्यूफैक्चरिंग में भारत की भूमिका बढ़ रही है, लेकिन असली मुनाफा रिसर्च और ब्रांडिंग में जाता है।
- अगर भारत केवल असेंबली पर निर्भर रहा तो वह मिडिल-इनकम ट्रैप में फंस सकता है।
भारत की डिप्लोमैटिक साख पर असर
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के मुताबिक, “पहले भारत की डिप्लोमैटिक साख उसके मूल्यों और आदर्शों पर खड़ी थी। अब अर्थव्यवस्था तो बढ़ी है, लेकिन डिप्लोमैटिक साख कमजोर होती दिख रही है।”
यह स्थिति बताती है कि केवल आर्थिक वृद्धि ही नहीं, बल्कि रणनीतिक ताकत और प्रोडक्ट इनोवेशन से ही भारत की वैश्विक स्थिति मजबूत होगी।
भारत को किन क्षेत्रों पर फोकस करना होगा?
- शिक्षा और रिसर्च:
- उच्च शिक्षा संस्थानों को इनोवेशन-ड्रिवन बनाना होगा।
- रिसर्च पर खर्च बढ़ाना होगा ताकि भारत पेटेंट्सऔरIP का मालिक बने।
- डीप-टेक और स्टार्टअप्स:
- AI, सेमीकंडक्टर, बायोटेक, क्लीन एनर्जी जैसे क्षेत्रों में भारत को अपनी डिजाइन और प्रोडक्ट स्ट्रेटेजी विकसित करनी होगी।
- मैन्यूफैक्चरिंग + इनोवेशन:
- केवल असेंबली पर नहीं, बल्कि ओरिजिनल डिजाइन और प्रोडक्ट डेवलपमेंट पर जोर देना होगा।
- वैश्विक समस्याओं का समाधान:
- जलवायु परिवर्तन, गरीबी और स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान के लिए टिकाऊ, सस्ते और प्रभावी प्रोडक्ट्स बनाने होंगे।
- इससे भारत की वैश्विक अहमियत भी बढ़ेगी।
- युवाओं की ताकत का इस्तेमाल:
- भारत की युवा आबादी दुनिया की सबसे बड़ी पूंजी है। उन्हें रिसर्च, इनोवेशन और स्टार्टअप्स में अवसर देने होंगे।
भारत के लिए यह समय टर्निंग प्वाइंट है। अगर भारत केवल सर्विस और मैन्यूफैक्चरिंग पर निर्भर रहा तो उसकी वैश्विक साख सीमित रहेगी। लेकिन अगर भारत रिसर्च, इनोवेशन और प्रोडक्ट नेशन बनने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाता है, तो वह न केवल अमेरिका और चीन जैसे देशों के बराबर खड़ा हो सकेगा, बल्कि वैश्विक समस्याओं के समाधान में भी अग्रणी भूमिका निभा पाएगा।
भारत को अब “सिर्फ सर्विस-ड्रिवन नेशन नहीं, बल्कि इनोवेशन-ड्रिवन प्रोडक्ट नेशन” बनना होगा। यही उसकी असली ताकत और कूटनीतिक साख की गारंटी है।



