समुद्र से खनिज पाने का रास्ता तलाश रहा है जापान

समंदर, हमारी धरती के 71 फ़ीसदी विस्तार में फैले हुए हैं. ये ज़िंदगी से लबरेज़ हैं. संसाधनों से भरे हुए हैं. अब तक समुद्र में रहने वाले क़रीब ढाई लाख जीवों की पहचान हो चुकी है.

लेकिन, समुद्र के जानकार कहते हैं कि इंसान ने अब तक समंदर का केवल पांच फ़ीसदी हिस्सा ही जाना है.

यानी बहुत मुमकिन है कि समुद्र में अभी ऐसे राज़ छुपे हुए हैं, जिनसे मानवता अब तक अनजान है.

पर, हम समुद्रों को जितना जानते हैं, उसमें ही हमारे फ़ायदे की अपार संभावनाएं हैं. एक ऐसी ही संभावना से अपने लिए तरक़्क़ी का रास्ता तलाश रहा है उगते सूरज का देश, जापान.

जापान के ओकिनावा समुद्र तट से कुछ दूर, समुद्र की सतह से हज़ारों मीटर की गहराई में गर्म पानी के सोतों के अवशेष मिले हैं.

एक वक़्त था, जब समुद्र की तलहटी में छुपी इन क़ुदरती सुरंगों से होकर गर्म पानी निकला करता था. लेकिन, अब ऐसा नहीं है.

गहरे समुद्र से खनिज

गर्म पानी के सोते तो बंद हो चुके हैं. लेकिन, इन छोटी-छोटी सुरंगों के भीतर इंसान के काम की बहुत सी चीज़ें छुपी हैं. इनमें कई महंगे और दुर्लभ खनिज मिलने की संभावना है.

धरती पर घटते खनिज भंडारों को देखते हुए अब गहरे समुद्र से खनिज निकालने के काम में बहुत से लोग और देश दिलचस्पी दिखा रहे हैं.

ओकिनावा के समुद्र तट के क़रीब गहराई में मौजूद इन सुराख़ों में ज़िंक की भारी मात्रा मौजूद होने की अटकलें लगाई जा रही हैं. कहा जा रहा है कि इन समुद्री सुराखों में इतना ज़िंक है कि जापान की साल भर की ज़रूरत पूरी हो सकती है.

समुद्र में खुदाई के ख़तरे

दिक़्क़त ये है कि अभी तकनीक इतनी विकसित नहीं हुई है कि इन सुराखों से आसानी से ज़िंक के अयस्क को निकाला जा सके.

फिर, गहरे समुद्र में खुदाई के और भी ख़तरे हैं. सबसे बड़ा ख़तरा तो वहां के जीवों के ख़ात्मे का है.

समुद्र की तलहटी में मौजूद सल्फ़ाइड के ये भंडार उस जगह हैं, जहां धरती की टेक्नोनिक प्लेट से निकलने वाली गर्मी की वजह से पानी गर्म होकर सुराख़ों से निकलता है.

पानी जिन चट्टानों से होकर गुज़रता है, उनमें मौजूद खनिजों को खुरचता चलता है. इसी वजह से समुद्र की तलहटी में खनिज के भंडार जमा होने लगते हैं.

ओकिनावा के समुद्र तट के क़रीब इन गर्म पानी के सोतों को 1977 में खोजा गया था. उस वक़्त ये सक्रिय थे. तब भी गहरे समुद्र में ज़िंदगी ख़ूब आबाद थी. वहां पर खोजकर्ताओं को दो मीटर से भी लंबे कीड़े, सफ़ेद केकड़े और मछलियां मिली थीं. इनके अलावा वहां पर अनगिनत छोटे जीवों की नस्लें भी आबाद थीं. ये जीव, गर्म पानी में रहने के आदी हो चुके थे.

समुद्री जीवों को नुक़सान नहीं पहुंचाना चुनौती

समुद्र की गहराई में मौजूद ये सुराख़ वक़्त के साथ गर्म पानी निकालना बंद कर देते हैं. इन्हीं बंद सोतों में जमा खनिज की तलाश में गहरे समुद्र में खुदाई के अभियान चलाए जा रहे हैं.

जापान में क़ुदरती संसाधनों की भारी कमी है. अपनी अयस्कों की ज़रूरत जापान आयात से पूरी करता है.

इसी वजह से जापान की सरकार गहरे समुद्र में खुदाई करके खनिज हासिल करना चाहती थी. इसकी संभावनाएं तलाशने के लिए 2013 में ही जापान की सरकार ने एक रिसर्च प्रोजेक्ट को हरी झंडी दी थी.

ये तो पता है कि समुद्र की तलहटी में खनिज के भंडार हैं. दिक़्क़त ये है कि इन्हें बिना समुद्री जीवों को नुक़सान पहुंचाए, निकाला कैसे जाए?

तकनीक का इस्तेमाल

ब्रिटिश जियोलॉजिकल सर्वे के पॉल लस्टी कहते हैं कि समुद्र की गहराई में जमा खनिज की तलाश आसान काम नहीं. जब इन सुराख़ों से गर्म पानी निकलता है, तो उसमें से खनिज के अवशेष नहीं मिलते. और जब गर्म पानी निकलना बंद हो जाता है, तो भी इन सुराख़ों के मुहाने पर ऐसी चीज़ें नहीं जमा होतीं कि पता लग सके कि कहां खनिज के कितने भंडार हैं.

समुद्र की गहराई का माहौल बेहद चुनौतीभरा होता है. तीन से चार हज़ार मीटर की गहराई में खुदाई करना आसान काम नहीं है. पहले तो इन खनिजों के भंडारों का पता लगाना होगा. फिर, इन्हें निकालने की जुगत भिड़ानी होगी. इसके लिए नई तकनीकों का विकास किया जा रहा है.

टोक्यो की जियोफ़िज़िकल सर्वे कंपनी जेजीआई के ईची असाकावा कहते हैं कि आवाज़ की तरंगों की मदद से समुद्र की तलहटी की पड़ताल करने वाले उपकरण विकसित किए जा रहे हैं. जहां पर खनिज मिलेगा, वहां ये तरंगें थोड़ा घूम जाएंगी.

कुछ कंपनियां इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरीक़ों से भी समुद्र की तलहटी को छान रहे हैं. जापान की सरकारी तेल, गैस और धातु कंपनी ने ऐसे छह ठिकानों का पता लगाया है, जहां पर खुदाई की जा सकती है. इन में से एक ठिकाने से क़रीब 1600 मीटर की गहराई से थोड़ा सा खनिज निकाला भी गया था.

वैज्ञानिक समुद्र की गहराई में खुदाई को बेहद ख़तरनाक बता रहे हैं. वो कहते हैं कि इससे गहरे समुद्र में रहने वाले जीवों को ख़तरा है. उनका पूरा इकोसिस्टम तबाह हो जाएगा.

समुद्र की तलहटी के इकोसिस्टम को पूरी तरह समझे बिना खुदाई से भारी नुक़सान भी हो सकता है. इससे आस-पास के सक्रिए गर्म पानी के सुराख़ों को भी नुक़सान हो सकता है.

जिन सोतों से गर्म पानी निकलना बंद हो चुका है, उनमें भी ज़िंदगियां आबाद होती हैं.

जिन जगहों पर खुदाई की संभावनाएं हो सकती हैं, उनके लिए गाइडलाइन तय की जा रही हैं. ये काम इंटरनेशन सीबेड अथॉरिटी कर रही है.

लेकिन पर्यावरण को होगा कम नुक़सान

जब ये गाइडलाइन तय होंगी, तो समुद्र तटीय इलाक़ों में ही मान्य होंगी. सुदूर समंदर में तो हर देश अपने हिसाब से चलता है.

गहरे समुद्र में खुदाई की वजह से कंकड़-पत्थर का गुबार उठने का डर है. इससे समुद्री जीवों की जान पर बन आएगी. फिर चौबीसों घंटे खुदाई चलने से वहां की लाइफ-साइकिल में भी खलल पड़ेगा.

समुद्र के इकोसिस्टम के इस नुक़सान को दूसरे तरीक़े से देखने की ज़रूरत है. समुद्र में खुदाई से प्रदूषण कम होगा.

आज धरती पर गहरी खदानों से खनिज निकालने में जितनी ऊर्जा ख़र्च होती है, उसके मुक़ाबले समुद्र की खुदाई से पर्यावरण का प्रदूषण क़रीब एक चौथाई तक कम हो जाएगा. फिर, धरती के मुक़ाबले समंदर से निकलने वाले खनिज की गुणवत्ता भी बेहतर होगी.

धरती पर कम होते खनिजों की किल्लत को समुद्र में खुदाई कर के ही पूरा किया जा सकता है. जैसे कि तांबा, जिसकी दुनिया में भारी मांग है.

पॉल लस्टी कहते हैं कि समुद्र में खुदाई से हम पर्यावरण को बहुत ही कम नुक़सान पहुंचाएंगे. खनिज हमारी तरक़्क़ी और सभ्यता की स्थिरता के लिए बहुत ज़रूरी हो गए हैं. आज विकास का पहिया घूमते रहने के लिए हम इन पर निर्भर हैं.

जापान फिलहाल खुदाई से ज़्यादा खनिजों की संभावनाएं तलाशने पर ज़ोर दे रहा है. लेकिन, इन गर्म पानी के सुराख़ों में अपार संभावनाएं दिखती हैं. हो सकता है कि आगे चलकर इनकी खुदाई करके खनिज निकालने का काम भी शुरू हो सके.

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KR. MAHI

CHIEF EDITOR KAROBAR SANDESH

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