जापानी बटेर का पालन: कम खर्च में अधिक लाभ

रायपुर : वर्तमान में कम खर्च में अधिक आय के लिए मुर्गी पालन व्यवसाय की तरह बटेर पालन व्यवसाय बहुत लोकप्रिय हो रहा है। जो लोग अधिक लाभ के लिए बटेर पालना चाहते हैं उन्हें जापानी बटेर का पालन करना चाहिए। जापानी बटेर प्रजाति एक साल में तीन से चार पीढ़ियों को जन्म दे सकती है। इस प्रजाति की मादा बटेर 45 दिन की उम्र से अंडे देना शुरू कर देती है। वहीं, यह 60वें दिन तक पूर्ण उत्पादन की स्थिति में आ जाता है। यदि मादा बटेर को अनुकूल वातावरण मिले तो वह अधिक समय तक अंडे देती रहती है। यह बटेर प्रति वर्ष 300 अंडे दे सकती है।

फ़ाइल फोटो

बटेर में अंडा उत्पादन क्षमता अधिक होती है। उनके चूजों की देखभाल मुर्गी के चूजों की तरह की जाती है। बटेर को पांच से सात सप्ताह की उम्र से अंडे मिलना शुरू हो जाते हैं। प्रजनन के लिए 3 मादाओं पर एक नर की व्यवस्था की जानी चाहिए। बटेर के अंडे का ऊष्मायन और स्पॉनिंग कृत्रिम रूप से आसानी से किया जा सकता है। अंडों को सुरक्षित रूप से इनक्यूबेट करने के लिए तापमान और आर्द्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। अंडे सेने के लिए तापमान 99.5 डिग्री फ़ारेनहाइट और आर्द्रता 87 प्रतिशत 0 से 14 दिनों के लिए होना चाहिए। इसके बाद 15 से 17 दिनों तक तापमान 98.5 डिग्री फेरनहाइट और आर्द्रता 90 प्रतिशत होनी चाहिए। ध्यान रहे अंडे को 14 दिन तक एक निश्चित समय पर उल्टा पलटना है। फिर 14 दिनों के बाद इनक्यूबेटर मशीन से अंडों को हैचिंग मशीन में रखा जाता है। फिर 18वें दिन से अंडे से चूजा निकलना शुरू हो जाता है।

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बटेर के चूजों का वजन लगभग 7 ग्राम होता है। इसलिए इसका बहुत सावधानी से ख्याल रखना चाहिए। पहले सप्ताह में चूजों की मृत्यु दर अधिक होती है। इसलिए शुरूआती दिनों में बटेर के चूजों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। शुरुआती हफ्तों में मृत्यु दर अधिक है। इसका मुख्य कारण यह है कि हमें पानी देने के तरीके पर विशेष ध्यान देना होता है। चूजे को सीधा पानी न दें। एक पानी के बर्तन में कंकड़ पत्थर भरकर उसके बीच में पानी भर दें। ताकि वह अपनी चोंच से पी सके। इससे बच्चे भीगते नहीं हैं। ज्यादातर मौतें बटेर के बच्चों के पानी में भीगने से होती हैं। क्योंकि भीगने से उन्हें निमोनिया होने का खतरा हो जाता है, जिससे मौत हो जाती है। बटेर के बच्चे के पैर बहुत नाजुक होते हैं। अगर फिसलने से उसका पैर टूट जाए। यह दूसरा मुख्य कारण है जिससे बटेर के बच्चे मर जाते हैं। इसे रोकने के लिए नालीदार चादर का उपयोग किया जाता है।

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चूजों को डीप लिटर मेथड या बैटरी ब्रूडर में जमीन पर पाला जाता है। इसके लिए बैटरी ब्रूडर बहुत उपयोगी है। पहले तापमान 35 से 37 डिग्री होना चाहिए। इसे धीरे-धीरे घटाकर 20 से 21 सेंटीग्रेड किया जा सकता है। लेकिन जब चूजे तीन से चार हफ्ते के हो जाते हैं। बटेर पालन के लिए वैज्ञानिक तरीके अपनाए जाने चाहिए। इससे न तो अधिक लागत लगती है और न ही व्यापार में हानि होने की संभावना रहती है। बटेर के चूजों को तीन से चार सप्ताह के बाद विशेष तापमान की आवश्यकता नहीं होती है, इसलिए उन्हें बैटरी ब्रूडर से निकालकर रखरखाव गृह में रखना चाहिए। बैटरी ब्रूडर में 150 से 180 वर्ग सेमी प्रति चूजा। और 200 से 250 सेमी गहरी लीटर विधि में। जगह होने के साथ-साथ 12 घंटे पर्याप्त रोशनी की व्यवस्था भी होनी चाहिए। चार सप्ताह की आयु के बाद चूजों की चोंच को थोड़ा काट देना चाहिए। जिससे केन बालसम रोग से चूजों को बचाया जा सकता है।

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वहीं, वयस्क बटेर यानी पांच सप्ताह की उम्र के बाद बटेरों को पिंजरों में या फर्श पर रखा जा सकता है। बटेर को चिकन हाउस की तरह भी रखा जा सकता है। 2.5 से 3 वर्ग फीट जगह में 8 से 12 बटेर रखे जा सकते हैं। लेकिन यदि अंडा देने वाली बटेर को बेटी विधि से पालना है तो प्रत्येक पिंजरा इतना बड़ा होना चाहिए कि उसमें एक नर और एक मादा बटेर रखा जा सके। इससे निषेचित अंडे प्राप्त होते हैं। देखा जाए तो बटेर पालन के लिए बैटरी विधि सबसे उपयुक्त है। आठ सप्ताह के बाद मादा बटेर 50 प्रतिशत अंडे देना शुरू कर देती है। 10 सप्ताह के बाद अंडे का उत्पादन अधिकतम होता है और 26 सप्ताह के बाद अंडे का उत्पादन कम होने लगता है। एक तरफ जहां मुर्गी सुबह 75 फीसदी अंडे देती है, वहीं बटेर दोपहर 3 बजे से शाम 6 बजे तक 75 अंडे देती है।

बटेर के आहार की कोई अलग व्यवस्था नहीं करनी पड़ती है। बटेरों के लिए आहार प्रबंधन ठीक वैसा ही है जैसा कि मुर्गियों के लिए होता है। बटेर का शारीरिक विकास 10 से 12 सप्ताह में पूरा हो जाता है। पहले तीन हफ्तों में विकास अधिकतम होता है। इसलिए बटेर के आहार में प्रति किलो अनाज 27 प्रतिशत प्रोटीन और 28 किलो कैलोरी ऊर्जा देनी चाहिए। फिर से 3 से 6 सप्ताह के आहार में 24 प्रतिशत प्रोटीन 29 तीस किलो कैलोरी ऊर्जा प्रति किलो आहार होना चाहिए। एक वयस्क बटेर प्रतिदिन 14 से 20 ग्राम भोजन का सेवन करता है। नए चूजों और अंडे देने वाली बटेरों के लिए अच्छी खाना देना चाहिए।

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KR. MAHI

CHIEF EDITOR KAROBAR SANDESH

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