गरियाबंद: बुलेट छोड़ बैलेट में भरोसा, आत्मसमर्पित माओवादी दंपति लखमू ने किया मतदान

रायपुर : यह खबर छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले से है, जहां एक माओवादी दंपत्ति लखमू और उसकी पत्नी ने हिंसा का रास्ता छोड़कर लोकतंत्र में अपनी आस्था जताई है। नगरीय निकाय चुनाव 2025 के तहत आज हुए मतदान में उन्होंने गरियाबंद नगर पालिका परिषद के लिए मतदान किया है।
कौन हैं लखमू और बैजंती?
लखमू और बैजंती कभी माओवादी विचारधारा से प्रभावित थे और संगठन में सक्रिय रूप से काम कर रहे थे। वह कई हिंसक घटनाओं में शामिल था। हालांकि, समय के साथ उन्होंने महसूस किया कि हिंसा और आतंक का मार्ग सही नहीं है। उन्होंने समाज की मुख्यधारा में लौटने का फैसला किया और साल 2015 मे उसने सरकार के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।

मतदान क्यों महत्वपूर्ण है?
लखमू और उसकी पत्नी ने बताया कि उन्होंने लोकतंत्र में अपना विश्वास जताया है। उनका मानना है कि हिंसा से किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। इसलिए, उन्होंने चुनाव में मतदान करके अपना योगदान दिया है।
गौरतलब है कि साल 2025 की शुरुआत में छत्तीसगढ़ के इसी गरियाबंद जिले में सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ में 16 नक्सली मारे गए थे। इनमें सीपीआई (माओवादी) नेता रामचंद्र रेड्डी भी शामिल था, जिसके सिर पर 1 करोड़ रुपये का इनाम था। ऑपरेशन में भारी मात्रा में हथियार और विस्फोटक बरामद किए गए थे। यह मुठभेड़ 19 जनवरी की रात छत्तीसगढ़-ओडिशा सीमा पर कुलहाड़ीघाट रिजर्व फॉरेस्ट में शुरू हुई थी।
बुलेट पर भारी पड़ा बैलेट
यह खबर उन लोगों के लिए एक सबक है जो अभी भी हिंसा के रास्ते पर चल रहे हैं। यह दिखाती है कि हिंसा (बुलेट) से कुछ हासिल नहीं होता है। लोकतंत्र में ही सबका भला है।
लखमू और उसकी पत्नी अब शांतिपूर्ण जीवन जी रहे हैं। वे सरकार की योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं। उन्होंने अन्य माओवादियों से भी हिंसा का रास्ता छोड़ने की अपील की है। यह खबर निश्चित रूप से सराहनीय है और यह दिखाती है कि लोकतंत्र में हर किसी के लिए जगह है।