फलदार पौधों के साथ लेमन ग्रास व शकरकंद की अंतरवर्ती खेती से कमाए लाखों रुपए

कोरिया : कोरिया जिले के मनेन्द्रगढ़ विकासखण्ड की ग्राम पंचायत लाई के कुछ किसानों ने इस साल मानसून पूर्व सामूहिक खेती का एक प्रयास करने का विचार किया। सबने बड़े उत्साह से टमाटर की फसल लगाई। पौधे बढ़ते, इससे पहले ही मौसम की मार हुई और पूरी फसल नष्ट हो गई। इस सामूहिक खेती के असफल प्रयास में इन किसानों की जमा पूँजी पूरी तरह बर्बाद हो गई। इस पूँजी के एक झटके में बर्बाद होने से इनके सामने विकट समस्या आ खड़ी हुई। अब इनके पास न तो खेती का कोई विकल्प था और न ही कोई बचत पूँजी, जिसके सहारे वे दुबारा कोई प्रयास कर सकें। ऐसे में इन किसानों का संबल बना महात्मा गांधी नरेगा। इस योजना के अंतर्गत इन्हें सामूहिक फलदार पौधरोपण अंतरवर्ती लेमनग्रासध्शकरकंद की खेती कार्य स्वीकृत किया गया, जिससे इन्हें अपने कर्जों से मुक्ति में मदद मिली, वहीं इस कृषि से अब उन्हें लाभ भी मिलने लगा है। इस कार्य में फलदार पौधों की स्थापित मातृ नर्सरी से इन्हें प्रथम छःमाही में ही लगभग दो लाख रुपए का लाभ हो चुका है। इन किसानों ने अपनी आर्थिक प्रगति से संबल पाकर जल्द ही एक ट्रेक्टर खरीदने की योजना बनाई है।

सामूहिक प्रयास से बदलाव लाने की इस कहानी की शुरुआत होती है गाँव के साधारण से पाँच किसानों की आपसी बातचीत और आगे बढ़ने की ललक से। इन किसानों में श्री परसराम भैना, श्री सोनसाय पण्डो, श्री हरिदास वैष्णव, श्री संतोष कुमार यादव और मोहम्मद सत्तार ने आपस में बातचीत करके बड़े स्तर पर खेती की एक कार्ययोजना बनाई। लेकिन टमाटर की फसल बर्बाद होने के बाद इन किसानों ने नए सिरे से आजीविका शुरु करने का निर्णय लिया जिसमें उनकी मदद ग्राम पंचायत एवं जिले के कृषि विज्ञान केन्द्र ने की। पंचायत के प्रस्ताव के आधार पर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) के तहत बारह एकड़ भूमि पर सामूहिक फलोद्यान और अंतरवर्ती खेती के लिए 11 लाख 82 हजार रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति प्रदान की गई और कृषि विज्ञान केन्द्र को कार्य एजेंसी बनाया गया।

अब कृषि विज्ञान केन्द्र ने सबसे पहले इन किसानों का एक समूह बनाया और गाँव के मनरेगा श्रमिकों के नियोजन से परियोजना में शामिल भूमि को समतलीकरण कर खेती लायक बनाया। फिर कार्य-योजना के अनुसार, यहाँ उच्च गुणवत्ता वाले फलदार पौधे वैज्ञानिक तरीके से लगवाए। इनका रोपण इस तरह से किया गया कि सभी पौधे उच्च उत्पादकता के साथ आने वाले वर्षों में मातृ-वाटिका की तरह अच्छे गुणवत्तायुक्त कलमें भी प्रदान करेंगे। यहाँ आम के पौधों के साथ रोपे गए अनार, कटहल, अमरुद और सीताफल आदि के पौधे हैं। केन्द्र के वैज्ञानिकों के अनुसार आने वाले वर्षों में यहाँ से प्रतिवर्ष 20 से 25 हजार नए पौधे तैयार किए जा सकेंगे। इससे जिले में बागवानी विस्तार हेतु उच्च गुणवत्ता के निरोगी पौधों की उपलब्धता बनी रहेगी और किसानों को आमदनी के विकल्प मिलेंगे।

महात्मा गांधी नरेगा मद से विकसित हो रहे इस फलोद्यान की घेराबंदी में किनारों पर 250 गढ्ढों में शकरकंद की कलमें लगाई गई थीं। यहाँ फलदार पौधरोपण के बाद अंतरवर्ती फसल के रुप में लेमनग्रास लगाया गया है। इनकी नियमित सिंचाई के लिए पास में ही बहने वाली नदी से पंप लगाकर पानी लिया जा रहा है और टपक पद्धति से सिंचाई की जा रही है। समूह के सदस्य श्री सोनसाय पण्डो की लगभग दो एकड़ भूमि इस फलोद्यान में शामिल है। वह बतलाते हैं कि यहाँ सिंचाई की लिए सोलर पम्प लगाने की योजना बनाई गई थी, जिसकी क्रेडा विभाग से अनुमति भी मिल चुकी है।

लॉकडाउन के दौरान इस कार्य से जहाँ गाँव में पर्याप्त संख्या में रोजगार के अवसर सृजित हुए, वहीं समूह के किसानों को भी रोजगार प्राप्त हुआ। समूह के कृषक श्री परसराम और श्री हीरादास ने बताया कि इस परियोजना के शुरुआती छः माह में ही उन्हें इसका लाभ मिलना शुरु हो गया था। यहाँ तैयार की गई लेमनग्रास की 74 क्विंटल पत्तियों को काटकर बेचने से उन्हें अगस्त माह में 74 हजार रुपए से ज्यादा का लाभ हुआ था। इसके साथ ही लेमन ग्रास की एक लाख 8 हजार नग स्लिप्स की बिक्री से उन्हें 81 हजार रुपए की आमदनी भी हुई थी। यहाँ लगाई गई शकरकंद की 65,300 नग वाईन कटिंग(डंठल) का भी विक्रय किया गया, जिससे समूह को एक लाख 14 हजार 275 रुपये की आय हुई। अब कुछ ही दिनों में शकरकंद की फसल भी निकालने लायक हो जाएगी, जिसका लगभग दस क्विंटल उत्पादन का अनुमान है, जिसकी अनुमानित कीमत 35 हजार के आस-पास हो सकती है। कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों की देख-रेख में यहाँ शतावर के भी एक सौ पौधे लगाए गए हैं, जो अभी तैयार हो रहे हैं। इन किसानों ने आगे बताया कि यहाँ के लेमनग्रास से निकलने वाले तेल का भी पैसा इनके खातों में आने वाला है। इससे और अधिक लाभ होगा।

परियोजना के प्रारंभिक चरण में ही इन पाँचों किसानों में से प्रत्येक के खाते में 33 हजार 775 रुपए आ चुके हैं। वहीं महात्मा गांधी नरेगा से मजदूरी की राशि मिलने से अब इनके समक्ष पैसों का संकट कम हो गया है। सभी किसान कहते हैं कि फलोद्यान में लेमनग्रास और शकरकंद की अंतरवर्ती खेती ने जीवन में बदलाव ला दिया है। वे हँसते हुए कहते हैं कि सालभर मेहनत से जितना नहीं मिलता था, वह इस खेती से छःमाह में ही मिल गया है। अब जब तक हिम्मत है, तब तक इस खेती को मन लगाकर करेंगे।

इस परियोजना के टेक्नीकल एक्सपर्ट एवं कृषि विज्ञान केन्द्र कोरिया के वरिष्ठ वैज्ञानिक श्री आर.एस.राजपूत एवं वैज्ञानिक (उद्यानिकी) श्री केशव चंद्र राजहंस ने बताया कि महात्मा गांधी नरेगा के अनुमेय कार्य पड़त भूमि विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत यहाँ उन्नत किस्म फलदार पौध रोपण सह अतंरवर्तीय फसल के रूप में लेमनग्रास (कावेरी प्रजाति), शकरकंद (इंदिरा नारंगी, इंदिरा मधुर, इंदिरा नंदनी, श्री भ्रदा, श्री रत्ना प्रजाति) व औषधीय पौधा सतावर का उत्पादन लिया जा रहा है। विशेषज्ञों ने आगे बताया कि लेमनग्रास खेती का फायदा यह है कि इसे एक बार लगाकर प्रत्येक दो से ढाई माह के बीच 4 से 5 साल तक इसकी कटाई की जा सकती है। जिले में किसानों का उत्पादक समूह बनाकर उसके माध्यम से लेमनग्रास से तेल निकालने की यूनिट लगाई गई है, जिससे कच्चे माल को एसेंसियल ऑइल के रुप में प्राप्त किया जा रहा है। लेमनग्रास के सुगंधित तेल से हस्त निर्मित साबुन व अगरबत्ती निर्माण कार्य का तकनीकी प्रशिक्षण भी इन कृषकों को दिया गया है, ताकि वे इनका निर्माण कर अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकें। वहीं यहाँ रोपित फलदार पौधों से लेयरिंग, कटिंग, ग्राफ्टिंग व बीज द्वारा लगभग 20-22 हजार उच्च गुणवत्ता की नई पौध तैयार की जावेगी, जिससे इन किसानों के समूह को लगभग दो लाख रुपए की अतिरिक्त आय अनुमानित है।

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KR. MAHI

CHIEF EDITOR KAROBAR SANDESH

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