छत्तीसगढ़ की सबसे लोकप्रिय एवं कीमती भाजी के पौधे तैयार

रायपुर : छत्तीसगढ़ की बोहार भाजी के स्वाद, रूचि एवं कीमत को देखते हुए कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र ढोलिया बेमेतरा में विगत दो वर्षों से बोहार भाजी के पौधे तैयार किये जा रहे हैं। बेमेतरा जिले के रहवासी किसानों ने इसके पौधे खरीदने में अपनी रूचि दिखाई है। यदि किन्हीं को ज्यादा मात्रा में बोहार भाजी के पौधे की आवश्यकता हो तो कृषि महाविद्यालय, ढोलिया में अग्रिम आदेश दें ताकि उस हिसाब से पौधे तैयार किये जा सके।

किसी भी जगह की खान-पान का तरीका वहाँ की प्राकृतिक तथा भौगोलिक स्थिति पर निर्भर करती है, छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहाँ मैदानी और जंगली इलाके ज्यादा है जिसके कारण सब्जियों में भाजी का अधिकतम उपयोग होता है। भाजीयों में पालक, मेंथी, लाल भाजी, चौंलाई साथ ही कई प्रकार की लोकल भाजी जैसे- तिनपनिया, चरौटा, कोईलार, बथुआ, तिवरा भाजी, मुनगा भाजी, चना, प्याज, खोटनी, गोभी, जरी, मूली, करमत्ता, कांदा, बर्रे, कौना केनी, कंदईल, उरला, पटवा, चेंच, अमारी भाजी, घमरा, सरसों, सिलियारी, खट्टा, सिंगारी, गोल, चनौरी, गुमी, भाजियाँ यहाँ लोकप्रिय है, और इन्हीं में से बोहार भाजी (कॉर्डिया डाइकोटोमा) एक लोकप्रिय और महंगी भाजी है। जिसे अंग्रेजी में बर्ड लाईम ट्री, इंडियन बेरी, ग्लूबेरी भी कहा जाता है। भारत के कई राज्यों में इसे अन्य नामों जैसे लसोड़ा, गुंदा, भोकर आदि नामों से जाना जाता है।

छत्तीसगढ़िया भाजियों में सबसे महंगी बोहार भाजी होती है। यह वर्ष भर में कुछ दिनों तक ही मिल पाती है, परंतु इसके लाजवाब स्वाद के कारण लोग इस भाजी के लिए हर कीमत देने को तैयार रहते हैं। बोहार भाजी पनीर से भी महंगी सब्जी है, यह बाजार में उपलब्धता के आधार पर 250 से 500 रूपये प्रति किलोग्राम में बिकती है। बोहार भाजी के फूल, फल, कली तथा पत्तियों से सब्जी, फल से अचार, इसके पके फल से एक चिपचिपा द्रव्य निकलता है, जिसका उपयोग औषधी के रूप में किया जाता है। बोहार भाजी में पोषक तत्व भरपुर मात्रा में पाये जाते हैं। यह पाचन तंत्र में सुधार, कफ तथा दर्द को दूर करने वाला तथा शरीर को शीतलता प्रदान करती है। इसके छाल का उपयोग खुजली उपचार के लिए किया जाता है तथा कृमि को खत्म करने में भी यह सहायक है।

यह जंगली पौधा है। बीज तथा जड़ से निकली हुई शाखाओं से इसका नया पौधा तैयार किया जा सकता है। इसे खाली पड़ी बंजर भूमि तथा खंत के मेड-बाड़ी में लगाकर खाली जगहों का उपयोग कर अतिरिक्त आय की प्राप्ति की जा सकती है। इस पौधे को किसी भी प्रकार के प्रबंधन की आवश्यकता नहीं पड़ती, यह थोड़े पानी मिल जाने पर जीवित रहते हैं। इसकी पुरानी पत्तियों को समय-समय पर तोड़ते हैं ताकि नयी कोमल पत्तियाँ प्राप्त हो सके। यदि बाड़ी में लगे पेड़ को गर्मी सीजन में समय-समय पर पर्याप्त मात्रा में पानी दिया जाये तो उत्पादन मुलायम पत्तियाँ तथा फल-फूल ज्यादा मात्रा में तथा अच्छी गुणवत्ता वाली प्राप्त होंगी।

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KR. MAHI

CHIEF EDITOR KAROBAR SANDESH

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