नक्सल प्रभावित सुकमा में बटेर पालन बना महिलाओं के लिए आत्मनिर्भरता की नई राह

स्वाद के शौकीनों में अब बटेर की मांग बढ़ने लगी है। बाजार में बटेर की मांग को देखते हुए नक्सल प्रभावित सुकमा जिले में इसके व्यावसायिक पालन को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है। जिससे स्थानीय लोगों की आमदनी का नया जरिया देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा सके। बटेर पालन के लिए पशुधन विकास विभाग द्वारा जिले की स्वसहायता समूह की महिलाओं को प्रोत्साहित करने के साथ ही आवश्यक संसाधन भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं, ताकि वे आसानी से बटेर का व्यावसायिक पालन कर सकें।
    पशुधन विकास विभाग के उप संचालक श्री शेख जहीरुद्दीन ने बताया कि बटेर पालन योजना से जहां स्वाद के शौकीनों के लिए आसानी से बटेर उपलब्ध होगा, वहीं स्थानीय लोगों की आय में भी वृद्धि होगी। विभाग द्वारा इस योजना के तहत गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाली स्वसहायता समूह की महिलाओं को बटेर सहित आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराया गया है। उन्होंने बताया कि सौतनार की तुलसी डोंगरी स्वसहायता समूह, संतोषी मां स्वसहायता समूह, मां दुर्गा स्वसहायता समूह, लक्ष्मी स्वसहायता समूह, नर्मदा स्वसहायता समूह और सूरज स्वसहायता समूह की महिलाएं बटेरपालन प्रारंभ कर चुकी हैं। इसके लिए सभी स्वसहायता समूहों को 80-80 बटेर के चूजे और 16-16 किलो दाना उपलब्ध कराया गया। इन महिलाओं को बटेरपालन और रखरखाव का प्रशिक्षण दिया गया है। महिलाएं अब बटेर पालन कर अपनी आय बढ़ा सकेंगी।
    श्री शेख ने बताया कि पिछले कुछ वर्षो में अंडे और मांस का कारोबार तेजी से बड़ा है, इसके लिए ब्रायलर फार्मिंग करते हैं ,जिसमें मुनाफा भी मिलता है लेकिन बीमारियों का डर भी बना रहता है। ऐसे में बटेर पालन कर कम खर्च में ही ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता हैं। इनके आहार में भी ज्यादा खर्च नहीं आता है। ये घर में बने कनकी, मक्का आदि को भोजन के रुप में ग्रहण करते हैं। एक बंद पिंजरे में ही इसका पालन पोषण किया जाता है। इनके मांस की मांग भी बहुत ज्यादा है। एक बटेर 7 सप्ताह में ही अंडे देना शुरु कर देती है इनका जीवनकाल 2 साल का होता है। ये अपने जीवनकाल में 400 से 500 अण्डे देती है। बटेर में बीमारी का खतरा भी कम पाया जाता है ये जल्दी बीमार भी नहीं होते और न ही इन्हें वेक्सीनेशन की जरूरत पड़ती है। इसका मांस मुर्गे की अपेक्षा ज्यादा महंगा बिकता है। इनका पालन कम स्थान में ही किया जा सकता है जिससे इसे कम लागत में ही शुरू किया जा सकता है।

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KR. MAHI

CHIEF EDITOR KAROBAR SANDESH

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