पढ़ें वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के शेड्यूल 3 में स्थान प्राप्त दुर्लभ प्रजाति के पक्षी की खबर

कवर्धा : कबीरधाम जिले के वन विभाग की टीम आज सबेरे रेस्क्यू के लिए रवाना हुए थे। टीम द्वारा चिल्फी परिक्षेत्र के लोहारा टोला परिसर के कक्ष क्रमांक 328 में रेस्क्यु के दौरान वन विभाग की टीम को दो दुर्लभ प्रजाति के वन्य प्राणी (बार्न) उल्लू मिले। उल्लूओं को कुत्तों से बचाते हुए वन्य प्राणी पशु चिकित्सक डॉ. राकेश वर्मा तथा डॉ. सोनम मिश्रा के नेतृत्व मे वन अमला द्वारा रेस्क्यू किया गया। बार्न उल्लूओं को प्राथमिक उपचार तथा भोजन व्यवस्था का प्रबंध वन विभाग की टीम द्वारा किया गया है।

दुर्लभ प्रजाति के (बार्न) उल्लू

वनमंडलाधिकारी श्री दिलराज प्रभाकरन ने बताया कि बार्न उल्लू दुर्लभ प्रजाति के पक्षी हैं, जिनको वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के शेड्यूल 3 में स्थान दिया गया है। बार्न उल्लू की औसत आयु 4 वर्ष होती है। उन्होंने बताया कि ऐसे भी उदाहरण हैं जिसमें बार्न उल्लू 15 वर्ष तक जीवित रहे हैं। कैप्टिव ब्रीडिंग में बार्न उल्लू 20 वर्ष तक जीवित रह जाते हैं। प्राकृतिक अवस्था में जंगलों में 70 प्रतिशत बार्न उल्लू अपने जन्म के प्रथम वर्ष में ही प्रतिकूल परिस्थितियों के चलते अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। राज्य तथा देश के विभिन्न भागों में ग्रामीण अंचल में ऐसी मान्यता है कि बार्न उल्लू को पवित्र मानते हैं, जिससे घर तथा गांव में तरक्की, खुशहाली तथा उन्नति होती है। बार्न उल्लू को तथा उनके शरीर के विभिन्न अंगों को तंत्र मंत्र में भी उपयोग किया जाता है। भोरमदेव अभ्यारण के चिल्फी परिक्षेत्र में रेस्क्यू किए गए बार्न उल्लू प्रजाति के दोनों पक्षियों को बचाने में प्रशिक्षु भारतीय वन सेवा के अधिकारी श्री गणेश यूआर. परिक्षेत्र सहायक चिल्फी पूर्व श्री देशमुख तथा स्थानीय वनरक्षक का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

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KR. MAHI

CHIEF EDITOR KAROBAR SANDESH

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