पढ़िए वन विभाग का गजब कारनामा: जिले के लोग बेरोजगार, राजस्थान के लोगों को दिया रोजगार

गरियाबंद: वन विभाग द्वारा एक ओर जंगलों को आग से बचाने कार्यशालाएं आयोजित की जा रही हैं, वहीं दूसरी ओर ठेकेदारों के लोग जंगल के भीतर तीव्र ज्वलनशील पदार्थों के साथ खुलेआम काम कर रहे हैं। गरियाबंद वन मंडल के नवागढ़ रेंज में एएनआर वर्क के तहत तालाब निर्माण कार्य चल रहा है, कार्य रोजगार मूलक है, लेकिन इसमें स्थानीय की बजाये, बाहरी प्रदेश के लोगों से मशीनों के द्वारा तालाब निर्माण का कार्य किया जा रहा है।

ऊपर का आदेश है, समझ गए?
नवागढ़ वन परिक्षेत्र अधिकारी बी.एल. सोरी से जब इस पर सवाल किया गया, तो उन्होंने धमकी भरे लहजे में कहा— “ऊपर का आदेश है, समझ गए?” सवाल उठता है कि आखिर इन बाहरी लोगों को जंगल में काम करने की अनुमति किसने दी और इस निर्माण कार्य की वास्तविक लागत क्या है?
मशीनों से रोजगार मूलक कार्य?
जब हमारे पत्रकार साथी ने वन विभाग के एसडीओ से पूछा कि रोजगार मूलक कार्य में मशीनों का उपयोग क्यों हो रहा है, तो उन्होंने जवाब दिया कि मजदूर नहीं मिलते— “25 बुलाओ तो 5 ही आते हैं, इसलिये मशीनों से काम करना पड़ रहा है।”
हो रहे निर्माण कार्य राजस्थान के लोगों के माध्यम से मशीनों से कराया जा रहा है। जबकि स्थानीय मजदूर काम पाने के लिए भटक रहे हैं। जबकि रोजगार मूलक कार्य के नियमों के तहत मजदूरों से काम कराया जाना चाहिए ताकि मजदूरों को गांव में ही रोजगार मिल सके। ताकि वे काम की तलाश में गांव से पलायन न कर सकें। लेकिन मशीनों से काम कराए जाने के कारण मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है।
सूत्रों के अनुसार पूरे गरियाबंद जिले में मनरेगा के तहत करीब 1.5 लाख एवं विकासखंड गरियाबंद में ही 42 हजार से अधिक मजदूर पंजीकृत हैं। मजदूर नहीं मिलते— “25 बुलाओ तो 5 ही आते हैं, इसलिये मशीनों से काम करना पड़ रहा है।” यह बात कुछ हजम नहीं हुई।

जंगल में गैस सिलेंडर और डीजल के ड्रम
चौंकाने वाली बात यह है कि जिस जंगल को आग से बचाने के लिये कार्यशाला आयोजित की गई, उसी जंगल में ठेकेदारों के मजदूरों ने अस्थायी ठिकाने बना रखे हैं, जहां खुलेआम खाना बनाने गैस सिलेंडर और जेसीबी व ट्रैक्टर के लिये डीजल के ड्रम रखे गये हैं। यह स्पष्ट रूप से वन विभाग के सुरक्षा निर्देशों की अनदेखी है।
सीसीएफ भी ‘ऊपर’ के आदेश के आगे बेबस?
जब इस मामले की जानकारी मोबाईल पर सीधे सीसीएफ श्रीनिवास राव को देने काल किया गया, तब उन्होंने मैसेज कर व्यस्तता का हवाला देते हुये काल रिसीव नही किया। व्हाट्सएप पर लिखित सूचना भेजे जाने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। इससे यह संदेह गहराता है कि मामला ‘ऊपर’ से ही दबा दिया गया।
निर्माण लागत पर भी सवाल
सूत्रों के अनुसार, चार तालाबों का निर्माण किया जाना है, जिनकी अनुमानित लागत 12 लाख रुपये प्रति तालाब बताई गई है। जबकि एसडीओ के अनुसार, यह लागत मात्र 2 से ढाई लाख रुपये प्रति तालाब है। निर्माण स्थल पर कोई सूचना फलक भी नहीं लगा है, जिससे निर्माण कार्य की पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं।

आखिर जवाबदेही किसकी?
एक तरफ सरकार और वन विभाग जंगलों को बचाने की अपील कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर खुद वन विभाग के ही अधिकारी ठेकेदारों को जंगल में ज्वलनशील पदार्थों के साथ काम करने की छूट दे रहे हैं। सवाल यह उठता है कि आखिर इसकी जवाबदेही किसकी होगी? क्या वन विभाग ‘ऊपर’ के आदेशों के नाम पर जंगलों की सुरक्षा से समझौता करता रहेगा?