बासमती की दो नई किस्मों से होगा बंपर उत्पादन, किसानों को कम लागत में मिलेगी अच्छी पैदावार

रायपुर/सूत्र: भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, दिल्ली ने किसानों को कम लागत पर धान की अच्छी उपज उपलब्ध कराने के लिए दो नई किस्में जारी की हैं। पूसा बासमती-1985 और पूसा बासमती-1979 दोनों ही किस्में उच्च खरपतवार के खतरे वाले खेतों के लिए अत्यधिक उपयुक्त हैं।

दोनों सामान्य बासमती चावल की तुलना में अधिक बेहतर हैं। इनकी खेती में करीब 30 से 35 फीसदी कम लागत आएगी, क्योंकि इनकी बुआई सीधे की जाएगी। प्रति एकड़ उत्पादन भी अच्छा होगा। इसके अलावा पानी की भी बचत होगी। खरपतवार नष्ट करने के लिए दवा का छिड़काव करने से कोई नुकसान नहीं होगा।

बासमती की दो किस्में

कृषि अनुसंधान संस्थान ने दोनों किस्मों की अनुशंसा उन सात राज्यों के लिए विशेष तौर पर किया है, जिन्हें बासमती धान की खेती के लिए जीआई चिह्नित किया गया है। इन राज्यों में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड,  दिल्ली एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 30 जिले शामिल हैं। इनका बीज इन्हीं क्षेत्रों के किसानों को दिया जाना है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक अशोक कुमार सिंह ने बुधवार को  दिल्ली स्थित पूसा संस्थान में दोनों नई किस्मों का विमोचन कर मौके पर उपस्थित किसानों को बीज के पैकेट भी उपलब्ध कराए। पूसा बासमती-1985 को पूसा बासमती-1509 को सुधार कर विकसित किया गया है, जो 115 से 120 दिनों में तैयार हो जाती है। औसत उपज 22-25 क्विटल प्रति एकड़ है।

इसी तरह पूसा बासमती-1979 को पूसा बासमती-1121 को अपग्रेड कर तैयार किया गया है, जो 130 दिनों में तैयार हो जाती है। इन किस्मों की अच्छी पैदावार के लिए प्रति एकड़ आठ किलोग्राम बीज पर्याप्त होगा। धान की खेती में ज्यादा मेहनत और लागत बिचड़ा लगाने में आती है। खर्चा कम करने के लिए वैज्ञानिकों ने सीधी बुवाई को ज्यादा व्यावहारिक माना है। इससे लगभग आधी मजदूरी की सीथी बचत होती है और फसल लगाने की प्रक्रिया भी आसान होती है।

धान की प्रति किलो उपज के लिए कम से कम तीन हजार लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। सीधी बुवाई से पैदावार में 30 से 35 प्रतिशत पानी कम लगता है। सीधी बुआई की दो विधियां हैं। पहली विधि को तरबतर कहते हैं। इसमें गेहूं की कटाई के बाद जुताई करके पानी लगाकर तीन दिनों तक छोड़ दिया जाता है। फिर लेब¨लग करके बुआई करते हैं। उसके 20 दिन बाद खरपतवार नाशक दवा का छिड़काव करना होता है। इससे खरपतवार नष्ट हो जाते हैं, लेकिन फसल पर कोई असर नहीं पड़ता है। दूसरी विधि में गेहूं कटे खेत में पहले धान के बीज डालने के 15-20 दिनों के बाद दोबारा पानी लगाकर 48 घंटे के भीतर दवा का छिड़काव करना होता है।

कीटनाशक का साइडइफेक्ट नहीं

धान की खेती में खरपतवार बड़ी समस्या है। इससे फसल में कई तरह के रोग हो सकते हैं। कीट पनप सकते हैं, जिससे 25 से 30 प्रतिशत उत्पादन गिर सकता है। बचाव के लिए किसान खरपतवारनाशक दवा छिड़कते हैं, जो फसल को भी प्रभावित करती हैं। बासमती धान की दोनों नई किस्मों को इस तरह विकसित किया गया है कि कीटनाशी का असर सिर्फ खरपतवार पर होता है। धान की फसल पूरी तरह सुरक्षित रहती है। बुआई में सीड ड्रिल के इस्तेमाल की अनुशंसा की है। कतारों के बीच में दूरी रखनी होगी। पौधे से पौधे का भी फासला रखने पर अत्यधिक उपज हो सकती है।

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KR. MAHI

CHIEF EDITOR KAROBAR SANDESH

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