क्या है डेलाइट सेविंग टाइम, क्यों है सुर्खियों में?

सूत्र/रायपुर : हाल ही में अमेरिकी सीनेट ने सर्वसम्मति से एक ऐसा कानून पारित किया है, जिसमें डेलाइट सेविंग टाइम जैसे बदलाव करने की जरूरत नहीं होगी, एक बार यह कानून पास हो जाने के बाद साल में दो बार घड़ियों में समय आगे पीछे करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। पहले हर साल सर्दी के आने के समय लोगों को अपनी घड़ी एक घंटा पीछे और सर्दी के समय एक घंटा आगे की ओर मुड़ना पड़ता था। हालांकि यह कानून सिर्फ अमेरिका के लिए होगा, लेकिन इसका असर पूरी दुनिया में दिखेगा क्योंकि दूसरे देश भी इसी तरह के कानून को अपना सकते हैं।

फ़ाइल फोटो

फिलहाल इस कानून को अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में पारित होना बाकी है, जिसके बाद राष्ट्रपति जो बाइडेन के हस्ताक्षर के बाद ही इस कानून को लागू किया जाएगा। इसके अगले साल नवंबर में ही प्रभावी होने की संभावना है। हर साल नवंबर में, अमेरिकियों को डेलाइट सेविंग टाइम के कारण अपनी घड़ियों को मानक समय से एक घंटे पीछे सेट करना पड़ता है।

दुनिया में डीएसटी की उपयोगिता पर लंबे समय से बहस चल रही है। यूरोपीय संसद ने भी इस नियम को हटाने के लिए एक कानून पारित किया, लेकिन बाद में इसे प्रभावी होने से रोक दिया। नहीं तो यह कानून साल 2021 में ही लागू होने वाला था। मौजूदा समय में दुनिया के 70 देशों में साल में दो बार डीएसटी का इस्तेमाल होता है।

डेलाइट सेविंग टाइम के समर्थन में सबसे बड़ा तर्क ऊर्जा की बचत है। जहां वसंत ऋतु में लोग अपनी घड़ियों को एक घंटे आगे सेट करते हैं, वहीं पतझड़ में वे अपनी घड़ियों को मानक समय से एक घंटे पीछे ले जाते हैं। डीएसटी के अधिवक्ताओं का कहना है कि इससे दिन में शाम लंबी हो जाती है। लोग अपने दैनिक कार्यों को एक घंटा पहले ही पूरा कर पाते हैं। इससे ऊर्जा की खपत कम होती है।

यह स्पष्ट नहीं है कि डेलाइट सेविंग टाइम कब अपनाया गया था, लेकिन लिखित जानकारी के अनुसार, इसे पहली बार 1 जुलाई 1908 को कनाडा के लोगों के एक समूह ने पोर्ट आर्थर, ओंटारियो में अपनाया था। उस समय उन्होंने अपनी घड़ियों को एक घंटे आगे कर दिया था और इसे कनाडा के अन्य हिस्सों में अपनाया गया था।

अप्रैल 1916 में, जर्मनी और ऑस्ट्रिया ने कृत्रिम प्रकाश के उपयोग को कम करने के लिए इस पद्धति को लागू किया। धीरे-धीरे अन्य यूरोपीय देशों ने भी इसे अपनाना शुरू कर दिया। यूरोपीय संघ के 28 सदस्य इस पद्धति को अपनाते हैं, पृथ्वी की धुरी के झुकाव के कारण दिन और रात का समय पूरे वर्ष एक जैसा नहीं रहता है। ध्रुवों की ओर दिन और रात के समय का अंतर अधिक होता है। यही कारण है कि भूमध्य रेखा और कर्क और मकर रेखा के आसपास के देशों को डीएसटी की आवश्यकता नहीं है। ध्रुवों के पास के देशों में अलग-अलग मौसमों में दिन और रात की लंबाई में काफी अंतर होता है। इसी वजह से कई देशों को मौसम के हिसाब से घड़ियां आगे-पीछे करने का फायदा मिलता है।

लेकिन यह कई समस्याएं भी पैदा करता है। एक अध्ययन में पाया गया है कि लोग एक घंटे की नींद खो देते हैं और नए समय के अनुसार अपनी दिनचर्या को अनुकूलित करने के प्रयास में उनकी बॉडी क्लॉक प्रभावित होती है। इसके कई दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैं। इसके अलावा समय की दृष्टि से अन्य देशों के साथ संबंध में भी समस्या है।

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KR. MAHI

CHIEF EDITOR KAROBAR SANDESH

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