कोरोना के इलाज में बिना मतलब के टेस्ट और दवाएं बंद हो : डॉक्टर्स
रायपुर/सूत्र : शीर्ष 35 डॉक्टरों के एक समूह ने केंद्र सरकार, राज्यों और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) को पत्र लिखकर कोविड की तीसरी लहर में ‘साक्ष्य आधारित प्रतिक्रिया’ की अपील की है। उन्होंने ऐसी दवाओं और जांच पर रोक लगाने को कहा है, जो कोरोना के इलाज के लिए जरूरी नहीं हैं। डॉक्टरों ने भी बिना वजह अस्पताल में भर्ती होने पर चिंता जताई है। डॉक्टरों ने साफ तौर पर कहा है कि सरकार वही गलती कर रही है, जो सेकेंड वेव में की गई थी।
इस पत्र पर हार्वर्ड और अमेरिका के जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के कुछ भारतीय मूल के डॉक्टरों के भी हस्ताक्षर हैं। इसमें कहा गया है कि 2021 की गलतियों को 2022 में फिर दोहराया जा रहा है। समूह ने तीन मुख्य मुद्दों की सूचना दी है। अनुचित दवा, अनुचित परीक्षण और अनुचित अस्पताल में भर्ती। अधिकांश कोविड़-19 मामलों में अब हल्के लक्षण होते हैं और इसके लिए बहुत कम या बिना दवा की आवश्यकता होती है। पिछले दो हफ़्तों में हमने जिन नुस्खों की समीक्षा की उनमें से अधिकांश में कोविड किट और कॉकटेल शामिल हैं।
कनाडा की मैकगिल यूनिवर्सिटी के संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. मधुकर पई ने कहा कि एजिथ्रोमाइसिन, डॉक्सीसाइक्लिन, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन, फेविपिराविर और आइवरमेक्टिन जैसे विटामिन और दवाएं देने का कोई मतलब नहीं है. ऐसी दवाओं के उपयोग के कारण डेल्टा की दूसरी लहर में म्यूकोमाइकोसिस देखा गया।
पत्र में कहा गया है कि ज्यादातर कोविड-19 मरीजों को सिर्फ रैपिड एंटीजन या आरटीपीसीआर टेस्ट और अपने ऑक्सीजन लेवल की होम मॉनिटरिंग की जरूरत होगी, लेकिन फिर भी उन्हें सीटी स्कैन और डी-डिमर और आईएल-6 जैसे महंगे ब्लड टेस्ट करने के लिए कहा जा रहा है। पत्र में कहा गया है कि इस तरह के परीक्षण और अनावश्यक अस्पताल में भर्ती होने से परिवारों पर बिना वजह आर्थिक बोझ बढ़ रहा है।