राज्यपाल सुश्री उइके ने भूमकाल विद्रोह के शहीदों को दी श्रद्धांजलि

जगदलपुर : राज्यपाल सुश्री अनुसूईया उइके के तीन दिवसीय बस्तर प्रवास के दौरान जगदलपुर पहुंचने पर स्थानीय मां दंतेश्वरी एयरपोर्ट में आत्मीय स्वागत किया गया। राज्यपाल सुश्री अनुसूईया उईके ने जगदलपुर के गोलबाजार में स्थित इमली वृक्ष में पहुंच कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया। प्रसिद्ध भूमकाल आंदोलन के पश्चात इसी इमली वृक्ष में विद्रोहियों को फांसी दी गई थी, जिनमें डेबरीधूर, माड़िया मांझी आदि शामिल थे। राज्यपाल ने जगदलपुर के गीदम मार्ग में स्थित गुंडाधुर उद्यान में शहीद वीर गुंडाधुर की मूर्ति पर श्रद्धा सुमन अर्पित किया। राज्यपाल सुश्री उईके ने धुरवा समाज के प्रतिनिधियों से शहीद गुंडाधुर के जीवनी के सम्बंध में चर्चा किए।

राज्यपाल सुश्री अनुसूईया उइके ने भूमकाल के शहीदों की स्मृति में जगदलपुर के हृदय स्थल गोलबाजार में भव्य स्मारक बनाने की घोषणा की। भूमकाल स्मृति दिवस पर जगदलपुर के इंदिरा प्रियदर्शिनी स्टेडियम में आयोजित सभा में उन्होंने यह घोषणा करते हुए कहा कि इस कार्यक्रम में शामिल होते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है। मैं इस धरा पर मां दंतेश्वरी माई को भी को प्रणाम करते हुए पूरे छत्तीसगढ़ के सुख-समृद्धि की कामना करती हूं। साथ ही मैं भूमकाल आंदोलन के नायक शहीद गुंडाधुर और अन्य सभी शहीदों को नमन करती हूं।

सुश्री उइके ने कहा कि आज से लगभग 110 वर्ष पूर्व बस्तर की इस भूमि पर आदिवासियों ने भूमकाल आंदोलन की हुंकार भरी थी। शहीद गुंडाधुर आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन वे आदिवासियों को तत्कालीन दमनकारी और शोषणकारी सत्ता के खिलाफ संगठित किया और वे अमर हो गए। वे बस्तर के ग्राम नेतानार के रहने वाले थे और धुरवा जनजाति के युवक थे।
भूमकाल का अर्थ है जमीन से जुड़े लोगों का आंदोलन। इस आंदोलन में कई आदिवासियों एवं ग्रामीणों ने जल, जंगल और जमीन तथा अपने हक और अधिकार के लिए अंग्रेजी हुकुमत एवं दमनकारी सत्ता के खिलाफ जंग छेड़ी। उनका विद्रोह इतना प्रबल था कि उनके खिलाफ ब्रिटिश सरकार ने बड़ी संख्या में सैनिकों को भेजा जिनका हमारे आदिवासियों ने अपने पारंपरिक हथियारों से साहस के साथ सामना किया। गुंडाधुर जी ने इस आंदोलन ने समाज में एक जागृति पैदा कर दी और कहीं न कहीं इसका असर राष्ट्रीय स्तर पर हुआ। देश के अलग-अलग क्षेत्रों में हुए आंदोलनों ने चिंगारी का काम किया, जिसमें भूमकाल आंदोलन भी शामिल था, जिसने बाद में एक ज्वाला का रूप ले लिया, जिसके कारण हमारे देश को 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली।

गुंडाधुर जैसे महानायक हमारे बीच नहीं है लेकिन आज शासन-प्रशासन के कार्यों से समाज में जागृति आई है और शनै-शनै प्रगति भी हो रही है। बस्तर क्षेत्र में तेजी से विकास भी हो रहे हैं, कनेक्टिविटी अच्छी हुई है। अब जगदलपुर एयरपोर्ट से रायपुर और हैदराबाद की विमान सेवा भी प्रारंभ हो गई है। बस्तर में माता दंतेश्वरी का आशीर्वाद रहा है। इसी कारण बस्तर में मातृ शक्ति का विशेष प्रभाव देखने को मिल रहा है। यहां की महिलाओं में जो जागरूकता देखने को मिल रही है, वह सराहनीय है। मुझे बताया गया कि दक्षिण बस्तर के दंतेवाड़ा जिले की महिलाओं के द्वारा सिले हुए कपड़े देश-विदेश में बेचे जाएंगे। यह कपड़े डैनेक्स ब्रांड के नाम से उपलब्ध होंगे, जैसे बड़ी-बड़ी कंपनियों का ब्रांड होता है। इनके लिए उन महिलाओं को मैं शुभकामनाएं देती हूं।

हमारा बस्तर क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के वनोपज पाए जाते हैं। उनका पर्याप्त संवर्धन किये जाने की आवश्यकता है। यहां के जड़ी-बुटियों में वह ताकत है, जो बड़े-बड़े बीमारियों का इलाज किया जा सकता है तथा वन उत्पाद बड़े पौष्टिक हैं। ट्राइफेड द्वारा इन उत्पादों के मार्केटिंग के लिए कार्य योजना बनाई गई है। यहां के युवाओं से आग्रह है कि वे अपने हुनर को पहचाने, उसे विकसित करें तथा यहां के स्थानीय संसाधनों का उपयोग करते हुए स्वरोजगार स्थापित करें तथा खादी ग्रामोद्योग तथा शासन के अन्य योजनाओं का आगे बढ़कर लाभ लें।

सुश्री उइके ने कहा कि अनुसूचित क्षेत्र की संरक्षक होने के नाते वे यहां के लोगों के अधिकारों के संरक्षण का कार्य करेंगी। उन्होंने इसके लिए जिला और विकासखण्ड स्तर पर पहुंच कर आदिवासियों की समस्याओं को जानने और और उनके समाधान का प्रयास करेंगी। उन्होंने कहा कि यहां युवाओं के रोजगार के लिए भी बेहतर प्रयास किया जा रहा है। इसी कड़ी में वनोपज के प्रसंस्करण के लिए बड़ी इकाई भी ट्राइफेड के माध्यम से स्थापित की जा रही है। इस अवसर पर भूमकाल के शहीदो के परिजनों को राज्यपाल द्वारा सम्मानित भी किया गया। राज्यपाल को धुरवा समाज के द्वारा पारम्परिक साड़ी भी भेंट की गई। इस अवसर पर धुरवा समाज के अधिकारी, गुण्डाधुर के पोता सहित गणमान्य अतिथि उपस्थित थे।



 

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KR. MAHI

CHIEF EDITOR KAROBAR SANDESH
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