ग्रीन और ऑर्गेनिक के नाम पर भ्रामक प्रचार करना पड़ सकता है भारी, इन विज्ञापनों पर होगी कार्रवाई
रायपुर/सूत्र: आजकल बाजार में ग्रीन, ऑर्गेनिक या बायोडिग्रेडेबल जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर उत्पाद बेचने का चलन तेजी से बढ़ रहा है। कई बार ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए ग्रीन पैकेजिंग का भी दावा किया जाता है। लेकिन इनमें से कई ऐसे उत्पाद होते हैं जो असलियत में ग्रीन या ऑर्गेनिक नहीं होते हैं या फिर आंशिक रूप से होते हैं। सरकार इस तरह के भ्रामक विज्ञापन के जरिए उत्पादों की बिक्री पर रोक लगाने के लिए ग्रीनवॉशिंग कानून ला रही है।
ग्रीनवॉशिंग क्या है?
ग्रीनवॉशिंग का मतलब पर्यावरण अनुकूल न होते हुए भी ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए ग्रीन, क्लीन, ऑर्गेनिक, इको फ्रेंडली, कार्बन न्यूट्रल जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना। अगर कोई कंपनी अपने उत्पाद पर ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करती है तो उसे अपने दावे के बारे में ग्राहकों को क्यूआर कोड या अन्य माध्यम से सूचित करना होगा।
जल्द लागू होगा नियम
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय की यह गाइडलाइन जल्द ही लागू की जाएगी। इस कानून का उल्लंघन करने पर उनके उत्पाद की बिक्री पर प्रतिबंध भी लग सकता है। गाइडलाइंस के मुताबिक, अक्सर प्रोडक्ट पर लिखा होता है कि इसकी पैकेजिंग 100 फीसदी रिसाइकल्ड मटेरियल से बनाई गई है, लेकिन इसका कोई सबूत नहीं है। ऐसे में प्रोडक्ट पर यह जानकारी देनी होगी कि वे किस सर्टिफिकेट के आधार पर यह दावा कर रहे हैं।
इन विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी
कई बार कपड़े धोने वाले उत्पाद पर लिखा होता है पर्यावरण की सुरक्षा के लिए केमिकल मुक्त। इस प्रकार के विज्ञापन को भी भ्रामक माना जाएगा क्योंकि इसका मतलब हुआ कि धोने में इस्तेमाल होने वाले अन्य उत्पाद हानिकारक है। ग्रीन व ऑर्गेनिक का दावा करने से पहले उन्हें अधिकृत एजेंसियों से उत्पाद का सत्यापन कराना होगा और उपभोक्ता को भी इसे बताना होगा।
हाथ धोने वाले उत्पाद पर लिखा होता है बायोडिग्रेडेबल। लेकिन असल में प्लास्टिक की बोतल में डाला गया तरल पदार्थ बायोडिग्रेडेबल होता है, न कि बोतल। ऐसे में यह स्पष्ट करना होगा कि केवल तरल पदार्थ ही बायोडिग्रेडेबल है, बोतल नहीं।