कहीं अस्पताल का बिल बीमार तो नहीं बना रहा है, मेडिकल खर्च की त्रासदी, कैसे होगा बचाव

रायपुर/कारोबारसंदेश: इस साल जुलाई में, स्वास्थ्य सेवा में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए एक नए कानून के तहत, अमेरिकी की स्वास्थ्य कंपनियों ने देश के प्रत्येक अस्पताल के लिए निर्धारित कीमतों का डेटा जारी करना शुरू किया। इस नियम के पीछे का विचार कीमतों में पारदर्शिता रखना, ग्राहकों को स्वास्थ्य बीमा और उपचार पर सबसे अच्छा सौदा चुनने में मदद करना था।

आप सोच रहे होंगे कि पर्सनल फाइनेंस के कॉलम में हेल्थकेयर की बात क्यों की जा रही है। उत्तर सीधा है। हेल्थकेयर का खर्च वो आइसबर्ग है, जो आपके पर्सनल फाइनेंस के जहाज की तरफ बढ़ रहा है। भारत में स्वास्थ्य सेवा के ऊंचे खर्च में कोई पारदर्शिता नहीं है। भारत के मध्यम वर्ग की आर्थिक स्थिति और बचत पर इसका जो प्रभाव पड़ रहा है, वह किसी त्रासदी से कम नहीं है।

किसी भी गंभीर बीमारी से पीड़ित होने का मतलब पांच, दस या अधिक वर्षों के लिए आपकी बचत और निवेश का आसान नुकसान हो सकता है। एक ओर जहां खर्च के आंकड़ों का आकार और आर्थिक स्थिति पर बोझ बढ़ता ही जा रहा है। दूसरी ओर, सेवा की वास्तविक डिलीवरी पर भी सवालिया निशान बढ़ता जा रहा है।

मितव्ययिता और फाइनेंशियल प्लानिंग ने पूरे कोरोनावायरस प्रकरण से जो एक सबक सीखा, वह यह था कि लोग संभावित स्वास्थ्य खर्चों के लिए कम पैसा रखते हैं। जैसे-जैसे आप बड़े होते हैं, स्वास्थ्य के लिए बड़े और बदतर झटके की संभावना एक वास्तविकता में बदल जाती है। तरीका जो भी हो, 55-60 की उम्र से लेकर मौत तक कोई न कोई आपसे 10 या 20 या शायद 30 लाख रुपये लेगा और इससे बचने का कोई उपाय नहीं है। अपनी वित्तीय स्थिति को मजबूत करने और बेहतर स्वास्थ्य देखभाल करके खुद को तैयार रखने के अलावा, व्यक्तिगत स्तर पर इससे बचने के लिए आप बहुत कुछ नहीं कर सकते। लेकिन एक अलग तरह के गहन बदलाव की जरूरत है और ये बदलाव रेग्युलेटरी सिस्टम से आने चाहिए।

दरअसल, हमें चिकित्सा खर्च की व्यवस्था में पारदर्शिता की सख्त जरूरत है। भारत में हेल्थकेयर की लागत के बारे में पूरी अस्पष्टता है। यदि, आप एक मोबाइल फोन या एक जोड़ी जूते या कार खरीदना चाहते हैं, तो अपना फोन निकाल लें और आपको इसकी सही कीमत तुरंत पता चल जाएगी। लेकिन आप अस्पताल के प्रकरण के साथ ऐसा नहीं कर सकते। ध्यान दें कि ‘अस्पताल के प्रकरण ‘ यहां बताए गए हैं, “मेडिकल प्रोसीजर” नहीं। कुछ जगहों पर प्राइस और प्रोसीजर साझा करने की, एक तरह की झूठी पारदर्शिता का दिखावा चलन में है। जहां मूल खर्च तो दिख जाता है, मगर उसमें पहले ही इतना कुछ जोड़ दिया जाता है कि उसे देखना-न-देखना बेमानी हो जाता है।

यहां जिस पारदर्शिता की बात की जा रही है वह वास्तव में कैसे काम करेगी या फिर अमेरिका की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की तरह हो जाएगी। यह कुछ इस तरह होगा: हर कोई ऑनलाइन जाकर किसी भी बीमारी के लिए अस्पताल का कुल खर्च संक्षेप में देख सकता है। हर अस्पताल के औसत, मीडियम, न्यूनतम और अधिकतम दाम, किसी भी अवधि के लिए देखा जा सके।

अगर कोई चाहे तो उन्हें असली बिल का पूरा डीटेल, ब्रेकअप के साथ देखने को मिल जाए। जो लोग बीमारी के बिजनेस में हैं वो कहेंगे कि बिजनेस की ये जानकारियां गोपनीय हैं। हालांकि, इलाज के फैसले लेते समय जिस तरह की मजबूरी ग्राहकों की होती है, उसे देखते हुए ऐसे किसी भी विरोध को सिरे से खारिज और नजरअंदाज कर देना चाहिए।

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KR. MAHI

CHIEF EDITOR KAROBAR SANDESH

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