खेती के लिए मुसीबत बनी गाजर घास, जानिए गेहूं के साथ कैसे पहुंची भारत

रायपुर/सूत्र : 72 साल पहले अमेरिका से आयातित गेहूं को लेकर एक आपदा भी भारत पहुंची थी, जो अभी तक खत्म नहीं हुई है। यह है गाजर घास, जिसके और भी कई नाम हैं। देश भर के किसान इस समस्या से जूझ रहे हैं। यह बहुत तेजी से बढ़ने वाला खरपतवार है, यह कृषि, मनुष्य, पशु, पर्यावरण और जैव विविधता के लिए खतरनाक खरपतवार है।

पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस या गाजर घास भारत में 1950 में अमेरिका से आयातित गेहूं के साथ पेश की गई थी। यह एक बहु-शाखाओं वाला, वार्षिक, सीधा खरपतवार पौधा है। इसके विकास के प्रारंभिक चरण के दौरान पत्तियों का एक बेसल रोसेट बनाता है। यह आमतौर पर 0.5-1.5 मीटर तक लंबा होता है, लेकिन कभी-कभी यह दो मीटर या उससे अधिक तक पहुंच जाता है। भारत में इसे चमकदार चांदनी और कड़वी घास आदि के नाम से भी जाना जाता है।

कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि इस खरपतवार की करीब 20 प्रजातियां पूरी दुनिया में फैली हुई हैं। मूल रूप से यह मेक्सिको, दक्षिण अमेरिका और कैरिबियन के मूल निवासी है। लेकिन पिछली शताब्दी में इसने अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, एशिया और प्रशांत द्वीपों तक अपना रास्ता खोज लिया और अब यह दुनिया के सात सबसे विनाशकारी और खतरनाक खरपतवारों में से एक है। हमारे देश में इसे गांवों और कस्बों, खेतों, बांधों, आवासीय कॉलोनियों, रेलवे पटरियों, सड़कों, जल निकासी और सिंचाई नहरों आदि के आसपास छोड़ी गई भूमि पर बड़ी मात्रा में उगते देखा जा सकता है। अपनी उच्च उर्वरक क्षमता के कारण एक पौधा 10,000 से 15,000 भार में हल्के सुषुप्तता रहित बीज पैदा करता है। बीज बहुत सूक्ष्म होते हैं, जो अपने दो स्पंजी पैड की मदद से हवा और पानी द्वारा आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर फैल जाते हैं।

यह खरपतवार जानवरों के लिए जितना खतरनाक है उतना ही इंसानों के लिए भी है। यह मनुष्यों और जानवरों में कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है। इस खरपतवार के लगातार संपर्क में रहने से मनुष्यों में चर्मरोग, एक्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा, श्वसन तंत्र में संक्रमण, गले में खराश, दस्त, मूत्र मार्ग में संक्रमण, पेचिश आदि हो जाते हैं। दुधारू पशुओं के दूध में कड़वाहट, खुजली, बालों का झड़ना, लार आना, दस्त, मुंह और आंतों में छाले भी अधिक मात्रा में खाने से उनकी मृत्यु हो सकती है।

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KR. MAHI

CHIEF EDITOR KAROBAR SANDESH

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