मोबाइल हो या कार, आपको मिलेगा राइट टू रिपेयर का अधिकार

नई दिल्ली : दुनिया में बढ़ते ई-कचरे को लेकर विशेषज्ञों में काफी चिंता है। इससे निपटने के लिए कई अभियान चल रहे हैं, जिनमें से एक है “राइट टू रिपेयर” का अधिकार अभी कई महँगे गैजेट्स को मामूली खराबी के कारण फेंक देना पड़ता है।

यह समस्या सिर्फ एक नहीं है। अधिकांश लोगों को ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, लेकिन केंद्र सरकार का नया कानून “राइट टू रिपेयर” आने के बाद यह काफी हद तक दूर हो जाएगा। उपभोक्ता मामलों के विभाग ने इसके लिए एक कमेटी भी बनाई है। कानून लागू होने के बाद कंपनी ग्राहक के पुराने उत्पादों की मरम्मत से इंकार नहीं कर सकेगी।

फ़ाइल फोटो

कंपनियों का कहना है कि यह मसला बेहद पेचीदा है। हर बार सभी उत्पादों की मरम्मत करना संभव और सुरक्षित नहीं होगा। दूसरी ओर, वियना में एक प्रयोग में यह साबित हो गया कि केवल मरम्मत से ही ई-कचरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है। 2021 में ही, “राइट टू रिपेयर यूरोप” नाम के एक संगठन ने वियना शहर प्रशासन के सहयोग से एक वाउचर योजना शुरू की।

इसके तहत उत्पादों को फेंकने के बजाय मरम्मत कर दोबारा इस्तेमाल करने के लिए 100 यूरो का कूपन दिया गया। इस दौरान लोगों ने 26 हजार चीजें ठीक कराईं। इस तरह वियना शहर का इलेक्ट्रॉनिक कचरा 3.75% कम हो गया। भारत के साथ-साथ अधिकांश देशों में मरम्मत की ज्यादा सुविधा नहीं है या मरम्मत इतनी महंगी है कि लोग मौजूदा उत्पादों को फेंक देते हैं और नए उत्पाद खरीदते हैं।

इसी वजह से कई देश गैजेट्स को रिपेयर करने की प्रक्रिया को आसान बनाना चाहते हैं। जानकारों का कहना है कि कंपनियां जान-बूझकर अपने उत्पाद इस तरह बनाती हैं कि उन्हें रिपेयर करना मुश्किल हो या जानबूझकर स्पेयर पार्ट्स मिलना मुश्किल हो जाए।

मार्च 2021 में, यूरोप ने वाशिंग मशीन, डिश वॉशर, फ्रिज और टीवी स्क्रीन के निर्माताओं को उस मॉडल के उत्पादन बंद होने के बाद 10 साल के लिए स्पेयर पार्ट्स प्रदान करने का आदेश दिया। अब सरकारें चाहती हैं कि फोन या अन्य इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के लिए भी यही नियम बनाया जाए। जुलाई 2021 में, अमेरिकी संघीय व्यापार आयोग ने सर्वसम्मति से मरम्मत के अधिकार के पक्ष में मतदान किया।

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KR. MAHI

CHIEF EDITOR KAROBAR SANDESH

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