तिरंगे के लिए जिनका ऋणी है राष्ट्र, जानें कौन हैं
रायपुर : भारत का राष्ट्रीय ध्वज-तिरंगा। तीन रंगों से सजा यह राष्ट्रध्वज सिर्फ झंडा भर नहीं, बल्कि भारत की आन-बान और शान है। यह 130 करोड़ से ज्यादा भारतीयों के साहस, शौर्य, अभिमान, आकांक्षाओं और पवित्रता का प्रतीक भी है। लेकिन सबसे पहले ध्वज का स्वरूप ऐसा नहीं था। समय-समय पर इसमें कई बदलाव हुए हैं। आज हमारा तिरंगा जिस मूल रूप में है, उसके जनक हैं पिंगली वेंकैया, राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण का जिम्मा खुद महात्मा गांधी ने सौंपा था। 1921 में उन्होंने ध्वज तैयार किया। वर्ष 1931 में इसमें कुछ संशोधन किए गए। 22 जुलाई 1947 को भारत का राष्ट्रीय ध्वज मूल रूप में स्वीकार किया गया।
पिंगली वेंकैया का जन्म दो अगस्त 1876 को आंध्रप्रदेश के मछलीपट्टनम में एक तेलुगु परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम हनुमंतरायुडु और मां का नाम वेंकटरमन्ना था। वेंकैया ने मद्रास से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी और ग्रेजुएशन के लिए कैंब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए थे। एक बात और उन्होंने रेलवे में गार्ड की नौकरी भी की थी। महज 19 साल की उम्र में ब्रिटिश आर्मी में सेनानायक बने थे।
उसी दौरान दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी से उनकी मुलाकात हुई थी। उनका सपना था कि भारत का अपना राष्ट्रीय ध्वज हो। उन्होंने 1916 से 1921 तक दुनिया भर के कई देशों के राष्ट्रीय झंडों का अध्ययन किया। उसके बाद विजयवाड़ा में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में पिंगली वेंकैया ने महात्मा गांधी को लाल-हरे रंग के झंडे का डिजाइन दिखाया था।
गांधी जी के सुझाव पर ही उन्होंने सफेद रंग को राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया, जो शांति का प्रतीक माना जाता है। 1931 में तिरंगे को अपनाने का प्रस्ताव पास किया गया, जिसके बाद देश को केसरिया, सफेद और हरा रंग के साथ तिरंगा मिला।