जयंती विशेष: सत्य, अहिंसा, दया और सामाजिक समरसता के संदेशवाहक बाबा गुरू घासीदास की सात शिक्षाएं
रायपुर: बाबा गुरू घासीदास छत्तीसगढ़ राज्य के वर्तमान बलौदाबाजार-भाटापारा जिले के गिरौदपुरी गांव में पिता महंगुदास एवं माता अमरौतिन के कोख से जन्मे थे गुरू घासीदास सतनाम धर्म जिसे आम बोल चाल में सतनामी समाज कहा जाता है, के प्रवर्तक थे। गुरूजी महान बैद्य एवं वैज्ञानिक और तर्कवादी विचारक थे। बाबा गुरू घासीदास जन्म से न मानकर कर्म को महान मानते थे। भंडारपुरी में जहां अपने धार्मिक स्थल को संत समाज को प्रमाणित सत्य के शक्ति के साथ दिया था, वहाँ गुरूजी के वंशज जो जन्म से गुरु हैं आज भी निवासरत है। उन्होंने अपने समय की सामाजिक आर्थिक विषमता, शोषण तथा जातिवाद सामंतीयो का अन्याय अत्याचार को समाप्त करके मानव-मानव एक समान का संदेश दिया।
बाबा गुरू घासीदास का जन्म 1756 में बलौदा बाजार जिले के गिरौदपुरी में एक साधारण परिवार में पैदा हुए थे। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर कुठाराघात किया। जिसका असर आज तक दिखाई पड रहा है। उनकी जयंती हर साल पूरे भारत में 18 दिसम्बर को मनाया जाता है।
बाबा गुरू घासीदास जातियों में भेदभाव व समाज में भाईचारे के अभाव को देखकर बहुत दुखी थे। वे लगातार प्रयास करते रहे कि मानव समाज को इससे मुक्ति दिलाई जाए। वे सत्य की तलाश के लिए गिरौदपुरी के जंगलों में सत्य और ज्ञान की खोज के लिए लम्बी तपस्या भी की। गुरु घासीदास ने सतनाम धर्म की स्थापना की और सतनाम धर्म की सात सिद्धांत दिए।
गुरू बाबा घासीदास की शिक्षा
बाबा गुरू घासीदास के शिक्षा दीक्षा के संबंध में जितने भी जानकारियां दी जाती है वे सब भ्रामक है उन्होंने किसी से भी शिक्षा प्राप्त नहीं किया और न ही उनके कोई गुरु थे बाबा घासीदास स्वयं महाज्ञानी थे। बाबा गुरू घासीदास ने समाज में व्याप्त जातिगत विषमताओं को नकारा। उन्होंने एक जाति विशेष के प्रभुत्व को नकारा और कई वर्णों में बांटने वाली जाति व्यवस्था का विरोध किया। उनका मानना था कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक रूप से समान हैसियत रखता है। गुरू घासीदास ने मूर्तियों की पूजा को वर्जित किया। वे मानते थे कि उच्च वर्ण के लोगों और मूर्ति पूजा में गहरा सम्बन्ध है।
बाबा गुरू घासीदास पशुओं से भी प्रेम करने की सीख देते थे। वे उन पर क्रूरता पूर्वक व्यवहार करने के खिलाफ थे। सतनाम पंथ के अनुसार खेती के लिए गायों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिये। गुरू घासीदास के संदेशों का समाज के पिछड़े समुदाय में गहरा असर पड़ा। सन् 1901 की जनगणना के अनुसार उस वक्त लगभग 4 लाख लोग सतनाम पंथ से जुड़ चुके थे और गुरू घासीदास के अनुयायी थे। छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर नारायण सिंह पर भी गुरू घासीदास के सिध्दांतों का गहरा प्रभाव था। गुरू घासीदास के संदेशों और उनकी जीवनी का प्रसार पंथी गीत व नृत्यों के जरिए भी व्यापक रूप से हुआ। यह छत्तीसगढ़ की प्रख्यात लोक विधा भी मानी जाती है। समाज को एकता के सूत्र में पिरोने वाले बाबा गुरू घासीदास शांति, सामाजिक समरसता के प्रतीक हैं। मानव समाज को नई दिशा प्रदान करने में उनका अतुलनीय योगदान है। उनके उपदेश आज भी प्रासंगिक हैं।
बाबा गुरू घासीदास की सात शिक्षाएं-
(1) सतनाम् पर विश्वास रखना।
(2) मूर्ति पूजा मत करो।
(3) जीव हत्या और मांसाहार नहीं करना।
(4) चोरी, जुआ से दूर रहना।
(5) नशा सेवन नहीं करना।
(6) जाति-पाति के प्रपंच में नहीं पड़ना।
(7) व्यभिचार नहीं करना।