अगर दुनिया ही नहीं बची, लोग नहीं बचे तो स्कूल जाने का मतलब क्या है? ग्रेटा थनबर्ग

जिस उम्र में बच्चे अपना शौक पूरा करने के लिए अपने माता-पिता से जिद करते हैं, उस उम्र में एक लड़की पूरी दुनिया में क्लाइमेंट चेंज के खिलाफ मुहिम की झंडाबरदार बन गई है. दुनियाभर में मौसम में हो रहे परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) को लेकर अलख जगाने वाली 16 साल की यह लड़की स्कूल छोड़कर यह काम कर रही है. वह धरती बचाने की लड़ाई लड़ रही है. स्वीडन की रहने वाली इस लड़की का नाम ग्रेटा थनबर्ग (Greta Thunberg) है. वह जलवायु परिवर्तन को लेकर दुनियाभर में जागरूकता फैला रही है.


ग्रेटा ने हर हफ्ते शुक्रवार के दिन स्कूल जाना छोड़ दिया था. उनका स्कूल स्ट्राइक फॉर क्लाइमेट या फ्यूचर फॉर फ्राइडे कैंपेन पूरी दुनिया में मशहूर है. ग्रेटा हर शुक्रवार को स्वीडेन की राजधानी स्टॉकहोम में संसद के बाहर बैनर लेकर प्रदर्शन करतीं हैं. इसके जरिये वह नेताओं और आम लोगों से दुनिया बचाने की अपील करती हैं.

नवंबर 2018 के स्कूल स्ट्राइक फॉर क्लाइमेट के उनके कैंपेन में 24 देशों के करीब 17 हजार छात्रों ने हिस्सा लिया. इसके बाद वह जलवायु परिवर्तन को लेकर बड़ी-बड़ी कांफ्रेस और आयोजनों में हिस्सा लेने लगीं. इसी साल अगस्त तक उनके कैंपेन में हिस्सा लेने वाले बच्चों की संख्या बढ़कर 36 लाख हो गई.


थनबर्ग ने कार्बन उत्सर्जन घटाने की पहले सबसे पहले अपने घर से की. इसके तहत उन्होंने अपने माता पिता को कम से कम हवाई यात्राएं करने और मांस न खाने की अपील की. इससे ग्रीन हाउसों को उत्सर्जन कम होता है. ग्रेटा का जन्म स्वीडन में जनवरी 2003 में हुआ था. उनकी मां ओपेरा गायिका और पिता अभिनेता हैं. ग्रेटा को इस साल नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया था.


ग्रेटा से एक टीवी चैनल ने कहा कि आपको नहीं लगता है कि आपको इस वक्त स्कूल में होना चाहिए तो उनका जबाव था, ‘अगर दुनिया ही नहीं बची, अगर लोग नहीं बचे तो स्कूल जाने का मतलब क्या है ’ वह जो कर रही हैं, वह स्कूल जाने से ज्यादा जरूरी है.


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KR. MAHI

CHIEF EDITOR KAROBAR SANDESH

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