जानिए नेहा और अंकित के ग्रीनवे की कहानी, जिसने दिलाई धुएं से मुक्ति

रायपुर/कारोबारसंदेश : देश के ग्रामीण इलाकों में आज भी लाखों महिलाएं लकड़ी और गोबर के उपले के सहारे खाना बनाने को मजबूर हैं. एलपीजी के बढ़ते दाम के चलते कई लोग फिर से मिट्टी के चूल्हे की तरफ शिफ्ट हो गए हैं। साल 2011-12 में जब नेहा जुनेजा और अंकित माथुर ने ग्रीनवे ग्रामीण इंफ्रा स्मार्ट स्टोव की शुरुआत की तो लोगों और निवेशकों ने कहा कि शायद वह एमबीए की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए, इसलिए वह ग्रामीण इलाकों में चूल्हे बेचने के लिए निकले हैं।. कुछ अन्य लोगों ने सवाल किया कि जिस देश में पारंपरिक मिट्टी के चूल्हे मुफ्त में उपलब्ध हैं, वहां कोई चूल्हा खरीदने के लिए एक हजार रुपये क्यों देगा।

इसके बाद भी दोनों ने अपना काम नहीं छोड़ा। दरअसल, नेहा और अंकित चाहती थीं कि देश की महिलाओं को धुएं के बीच खाना बनाते समय होने वाली मुश्किलों से मुक्ति मिले. नेहा और अंकित माथुर ने इस उद्यम में काम करना जारी रखा और आज वे देश की सबसे बड़ी कंपनी के रूप में धुंआ रहित चूल्हा बनाने का काम कर रहे हैं।

कुछ दिन पहले ग्रीनवे ने गुजरात के वडोदरा में एक फैक्ट्री लगाई है। यह देश की सबसे बड़ी चूल्हा निर्माता की सबसे छोटी इकाई है। नेहा और अंकित ने जब अपना बिजनेस शुरू किया तो पहले 6 महीने में हर महीने 5000 स्टोव बेचने लगे। 5 साल बाद ग्रीनवे तीन लाख से ज्यादा ग्रीन स्टोव बेचने में सफल रहा है।

मुख्य रूप से उनका व्यवसाय दक्षिण भारत के राज्यों में फैला हुआ है। तीन लोगों के साथ काम शुरू करने के बाद आज ग्रीनवे में 130 से ज्यादा कर्मचारी काम कर रहे हैं। मुंबई मुख्यालय वाली ग्रीनवे ग्रामीण कंपनी अपने उत्पादों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए एक शानदार रणनीति अपनाती है और भारत में सबसे बड़ी स्टोव विक्रेता बन गई है।

अब कंपनी नेपाल, बांग्लादेश और मैक्सिको जैसे देशों में भी लोगों को धुएं से निजात दिला रही है। भारत जैसे देश में आज भी 85 करोड़ से ज्यादा लोग लकड़ी, और गोबर के उपले या खेती से बची ऐसी ही अन्य चीजों पर खाना बनाते हैं। वे खुले में आग जलाते हैं या पारंपरिक रूप से मिट्टी के चूल्हे का उपयोग करते हैं।

पारंपरिक चूल्हा पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के लिए अच्छा नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रीन हाउस गैसों का चार प्रतिशत उत्सर्जन ग्रामीण क्षेत्रों में बने मिट्टी के चूल्हों से होता है। इन सभी समस्याओं से निजात दिलाने में ग्रीनवे विलेजर का चूल्हा सफल साबित हुआ है।

भारत में मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण गृह प्रदूषण है। भारत में वर्ष 2010 में, इनडोर प्रदूषण के कारण दस लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई। अंकित और नेहा ने काम शुरू करने के लिए देश के ग्रामीण इलाकों में 9 महीने से ज्यादा का सफर तय किया है।

वह लोगों से मिलना चाहते थे और उनके दैनिक कार्यों में आने वाली समस्याओं के बारे में समझना चाहते थे। फिर उन्होंने अपने एनर्जी एफिशिएंट स्टोव के दस अलग-अलग प्रोटोटाइप बनाए और पांच अलग-अलग राज्यों में इसका परीक्षण किया।

उन्होंने स्थानीय महिलाओं को अधिक चूल्हा देकर उनका फीडबैक लिया। नेहा और अंकित का ग्रीनवे स्मार्ट स्टोव एक एकल बर्नर उच्च दक्षता वाला खाना पकाने का स्टोव है जो उत्सर्जन को कम करने के साथ-साथ ईंधन की खपत के मामले में 70 प्रतिशत तक बचाता है।

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KR. MAHI

CHIEF EDITOR KAROBAR SANDESH

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